संसदीय समाचार

राम विलास पासवान का राजनीतिक सफर रिकॉर्ड खूबियों से भरा रहा

केंद्रीय उपभोक्ता व खाद्य मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान का लंबी बीमारी के बाद गुरूवार को दिल्ली में निधन हो गया. शुक्रवार को उनका पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए दिल्ली से पटना लाया गया। उनके निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य नेताओं ने श्रद्धांजलि दी और एक राजनेता के रूप में सामाज में उनके अमूल्य योगदान को याद किया.

बिहार के खगड़िया जिले में 1946 में जन्मे राम विलास पासवान का राजनीतिक सफर रिकॉर्ड उपलब्धियों से भरा रहा. 1969 में चुनावी राजनीति का सफर शुरू किया और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा में कदम रखा. इस दौरान समाजवादी आंदोलन में लगातार सक्रिय रहे और 1975 में आपातकाल लागू होने पर दूसरे सोशलिस्ट नेताओं के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पूरे आपातकाल में जेल में रहने के बाद 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने और हाजीपुर से लोक सभा का अपना पहला चुनाव लड़ा. यह उनके लिए ही नहीं, चुनावी राजनीतिक के लिए यादगार बना गया. इसमें उन्हें 89 फीसदी वोट मिले जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था. इसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो गया.

अपने राजनीतिक सफर में वे दलितों के कल्याण के लिए सक्रिय रहे. 1983 में उन्होंने दलित सेना बनाई, जिसका मकसद दलितों के हित के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना था. 1989 में वीपी सिंह सरकार में पहली बार केंद्रीय मंत्री बने. उन्हें श्रम और कल्याण मंत्रालय सौंपा गया. 1996 में वे दोबारा केंद्रीय मंत्री बने और इस बार उन्हें रेल मंत्रालय मिला. इसके बाद वे थोड़े-बहुत अंतराल के साथ केंद्र में बदलती सरकारों में मंत्री बनते रहे. सत्ता परिवर्तन को भांप लेने में इसी महारत की वजह से उन्हें राजनीति का मौसम विज्ञानी तक कहा जाने लगे. कई सरकारों में उन्होंने किंगमेकर की भूमिका निभाई.

साल 2000 में उन्होंने जनता दल से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी बनाई. 2002 में गुजरात के सांप्रदायिक दंगों का सवाल उठाते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अलग होने का फैसला किया. 2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में केमिकल्स और फर्टिलाइजर मंत्री बने. हालांकि, 2009 में जहां यूपीए सरकार सत्ता में वापसी करने में सफल रही, वहीं राम विलास पासवान को 33 साल में पहली बार हाजीपुर में हार का सामना करना पड़ा. 2014 में बार फिर हाजीपुर की जनता ने उन पर भरोसा जताया और लोक सभा के लिए चुन लिया। लगभग 12 साल बाद एनडीए में वापसी करते हुए केंद्रीय उपभोक्ता और खाद्य मंत्री बने। हालांकि, आठ बार लोक सभा पहुंचने वाले राम विलास पासवान ने 2019 में लोक सभा का चुनाव न लड़ने का फैसला किया. बाद में वे राज्य सभा के लिए चुने गए.

राम विलास पासवान भले ही बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में शामिल रहे हों, लेकिन उनकी राजनीति को सांप्रदायिकता या धार्मिक उन्माद विरोधी माना जाता रहा है. 2002 के गुजरात दंगों पर एनडीए छोड़ने के अलावा भी उन्होंने कई मौकों पर सांप्रदायिक राजनीतिक का मुखर विरोध किया। 1996 में लोक सभा उन्होंने धर्म आधारित राज्य का पुरजोर तरीके से विरोध किया था. उन्होंने कहा था, ‘जब आप सामाजिक न्याय की बात करते हैं तो इसका मतलब होता है कि आप समाज में सभी को न्याय उपलब्ध कराएंगे, चाहे वह दलित हो या ब्राह्मण. भारत हर किस्म के फूलों से भरे बगीचे की तरह है. यहां हिंदू,  मुस्लिम और क्रिश्चियन सभी हैं.’

राम विलास पासवान ने शासन-सत्ता में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की कमी को लेकर भी मुखर आवाज उठाई थी. उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक सभी हिंदू हैं, 99 फीसदी सरकारी नौकरियां हिंदुओं के पास हैं, सिर्फ एक फीसदी नौकरियां ही अल्पसंख्यकों के पास हैं. यही वजह है कि राम विलास पासवान की नजरों में वही माली सबसे अच्छा था, जिसकी बगिया में एक ही तरह के फूल होने के बजाए सभी तरह के फूल हों.

 

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डेस्क संसदनामा

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