उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों की हड़ताल और विरोध प्रदर्शन पर रोक को अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. प्रदेश सरकार ने तीसरी बार उत्तर प्रदेश अतिआवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा) को अगले छह महीने तक बढ़ा दिया है. इससे जुड़ी अधिसूचना 25 मई, 2021 को जारी की गई. इससे उत्तर प्रदेश सरकार, उसके अधीन किसी संस्था या निगम और स्थानीय प्राधिकरण के कर्मचारी हड़ताल नहीं कर सकेंगे. इसके मुताबिक, सरकार ने एस्मा को अगले छह महीने के लिए बढ़ाने के लिए लोकहित को आधार बनाया है. ये कैसा लोकहित है, जो लोकतंत्र में अभिव्यक्ति के दयार को घटाता हो?
तीसरी बार एस्मा को बढ़ाने के पीछे कर्मचारियों के पनप रहे असंतोष को दबाने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है. दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर और पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी करने के बाद बड़ी संख्या में कर्मचारी संक्रमण की चपेट में आए हैं और उनमें से कईयों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है. अकेले शिक्षा विभाग में 1,621 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों का निधन होने का दावा है. अब इनके कर्मचारी संगठन अपने साथियों के परिवार के पुनर्वास की मांग को लेकर मुखर हो रहे हैं. राज्य सरकार ने पहले तो अड़ियल रुख दिखाया फिर रुख नरम किया. लेकिन मृतक आश्रितों को नौकरी और मुआवजा देने का सवाल लगातार बना हुआ है.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में कर्मचारियों का महंगाई भत्ता भी बीते डेढ़ साल से लटका है. प्रदेश सरकार ने 2021-22 के लिए पेश बजट में कर्मचारियों के महंगाई भत्ते के भुगतान के लिए लगभग 16 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा था. लेकिन अब तक कर्मचारियों को भत्ते का भुगतान नहीं का किया गया है. इसको लेकर भी कर्मचारियों में असंतोष की स्थिति है. कर्मचारियों का कहना है कि उनका यह असंतोष चुनावी साल में आंदोलन की शक्ल में सामने न आ जाए, इसे रोकने के लिए सरकार ने एस्मा को बढ़ा दिया है.
एक और बात है, जिसे एस्मा को तीसरी बार बढ़ाने की प्रमुख वजह माना जा रही है. यूपी में हमेशा ही चुनावी साल में कर्मचारियों और बेरोजगारों का धरना-प्रदर्शन तेज हो जाता है. 2017 में भी कर्मचारियों की हड़ताल और लखनऊ में सरकार का घेराव बढ़ गया था. इसके दो मकसद बहुत साफ होते हैं. पहला मकसद, मौजूदा सरकार पर अपनी मांगों के लिए दबाव बनाना होता है.
चुनावी साल में कर्मचारियों को सरकार की तरफ से सख्ती जैसा कोई खतरा नहीं होता है, क्योंकि ऐसा करके कोई भी सरकार अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहती है. दूसरा मकसद, अपनी मांगों को पक्ष-विपक्ष के चुनाव घोषणापत्रों में जगह दिलाना होता है. इस लिहाज से उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों की प्रमुख मांग पुरानी पेंशन बहाली है.
पुरानी पेंशन के लिए कर्मचारियों ने 2017 में भी आवाज उठाई थी और उन्होंने सत्ता परिवर्तन का इसी आधार पर समर्थन भी किया था. लेकिन बीते चार साल में यह मांग जहां थी, वहीं पर खड़ी है. जाहिर है कि इस बार भी कर्मचारी इस मांग को लेकर हल्लाबोल सकते हैं, लेकिन सरकार एस्मा को बढ़ाकर इसकी संभावना को सीमित कर दिया है.
इसके अलावा बेरोजगारों का भी एक तबका है, जो भले ही एस्मा के दायरे में नहीं आता है. लेकिन चुनावी साल में सक्रिय होकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने एस्मा को विस्तार देकर अपरोक्ष रूप से इस तबके को भी धरना-प्रदर्शन न करने का अप्रत्यक्ष संकेत दे दिया है. हालांकि, कर्मचारियों और बेरोजगारों के चुनावी व्यवहार पर नजर रखने वाले बताते हैं कि इनके खिलाफ सख्ती अक्सर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जाती है.
विपक्ष इस बात को बखूबी समझ रहा है. इसीलिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने एस्मा को तीसरी बार बढ़ाने पर उत्तर प्रदेश सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने फेसबुक पर लिखा, ‘सरकार तानाशाही पर उतारू है.’ फेसबुक पर उन्होंने आगे लिखा, ‘उत्तर प्रदेश के कर्मचारी संगठनों की तमाम मांगें लंबित हैं. उन्होंने पंचायत चुनावों में बहुतों को खोया है. सरकार उनके साथ बैठकर बात करने की बजाए प्रदेश में तीसरी बार एस्मा लगा रही है. सरकार की नीति कर्मचारियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है.’
राजनीति नफा-नुकसान की बात से इतर भारतीय संविधान सभी नागरिकों को शांतिपूर्ण धरना-प्रदर्शन की आजादी देता है. ऐसे में एस्मा को लगातार डेढ़ साल तक के लिए लागू किया जाना, निश्चित तौर पर नागरिकों के इस अधिकार के साथ समझौता है.