आज केंद्र सरकार भले ही कोरोना के बढ़ते आंकड़ों में पॉजिटिविटी की तलाश कर रही हो. लेकिन सच यही है कि शहर हो या गांव, हर तरफ मौत की बरसात जारी है, श्मशान दहक रहे हैं, नदियों में शव तैर रहे हैं, परिवार बिखर रहे हैं, बच्चे अनाथ और बुजुर्ग बेसहारा हो रहे हैं. आज की तारीख में शायद ही कोई परिवार बचा हो, जिसने अपने किसी प्रियजन को न खोया हो. आखिर ये हालात कैसे बन गए? क्या कोरोना महामारी की दूसरी लहर वाकई बिना सूचना दिए आ गई? या केंद्र सरकार ने सब कुछ जानते हुए इस खतरे की अनदेखी की?
इस सवालों का जवाब पाने के लिए आपको संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से यानी मार्च में लौटना होगा. यह वही समय था, जब पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव के लिए सरगर्मियां बढ़ गई थीं. सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी दलों के नेता इन राज्यों में अपनी रैलियां और चुनावी सभाएं करने लगे थे. इतना ही नहीं, उत्तराखंड में कुंभ की तैयारियां भी जोर पकड़ चुकी थीं.
इन सब के बीच 16 मार्च को राज्य सभा में दो सांसदों विकास कुमार और डेरेक ओ ब्रायन (Derek O’Brien) ने कोरोना की दूसरी लहर आने का सवाल उठाया. केंद्र सरकार से उन्होंने पूछा कि भारत में दूसरी बार कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, इससे निपटने के लिए सरकार ने क्या-क्या उपाय किए हैं?
सांसदों के इन सवालों (संख्या-2356) का केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने दिया. उन्होंने बताया, ‘भारत सरकार सितंबर, 2020 के बाद से लगातार गिरावट के बाद कोरोना के मामलों में दोबारा बढ़ोतरी की पूरी सक्रियता से निगरानी कर रही है। (Government of India is actively monitoring the resurgence of COVID-19 cases after sustained decline that was witnessed since mid-September 2020.) इस जवाब से साफ है कि कोरोना की दूसरी लहर अचानक नहीं आई है और इसकी सरकार को बाकायदा जानकारी थी.
केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने आगे कहा कि मामलों में उछाल आने और इससे जुड़ी जरूरतें पूरी करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों के साथ मिलकर संस्थागत प्रयास किए गए हैं. इसमें औपचारिक संचार, वीडियो कॉन्फ्रेंस और केंद्रीय दलों की तैनाती जैसे कदम शामिल हैं. (Any surge in cases reported and the need for institutionalizing necessary public health measures is taken up with the concerned States through formal communication, video conferences and deployment of Central team.)
जमीन पर क्या काम हुआ
केंद्र की सक्रिय निगरानी और राज्यों को दी गई सलाह का जमीन कितना असर पड़ा? इस जवाब के ठीक एक महीने बाद यानी अप्रैल में देश भर में लाशें क्यों गिरने लगीं? क्यों मेडिकल ऑक्सीजन के अभाव में लोग तड़प-तड़प कर मरने लगे? केंद्र सरकार को ऑक्सीजन की इस जरूरत का अंदाजा क्यों नहीं हुआ? जबकि बीते साल ही स्पष्ट हो गया था कि कोरोना मरीजों के इलाज में मेडिकल ऑक्सीजन सबसे जरूरी है. इन सवालों को भी छोड़ दिया जाए तो भी यह सवाल आता है कि केंद्र सरकार ने बीते साल कोरोना महामारी से निपटने के लिए जो भी कदम उठाए थे, उन्हें जमीन पर उतारने में गंभीरता क्यों नहीं दिखाई?
वेबसाइट स्क्रॉल के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वायत्त संस्था सेंट्रल मेडिकल सर्विस सोसाइटी ने बीते साल अक्टूबर में देश के 150 जिला अस्पतालों में प्रेशर स्विंग एडजॉर्ब्शन ऑक्सीजन प्लांट्स (Pressure Swing Adsorption oxygen plants) प्लांट लगाने के लिए टेंडर आमंत्रित किया. यह प्लांट वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को एकत्रित करके उसे पाइप के जरिए अस्पतालों में पहुंचाता है. इससे बाहर से लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन खरीदने की जरूरत खत्म हो जाती है.
कोरोना के इलाज में ऑक्सीजन की अहमियत होने के बावजूद बजट आवंटन में देरी हुई और टेंडर की प्रक्रिया लटकी गई. फिर सरकार ने 162 ऑक्सीजन प्लांट्स (12 बाद में जोड़े गए) के लिए 201.58 करोड़ रुपये जारी किए. लेकिन अप्रैल 2021 तक यानी लगभग छह महीने बाद सिर्फ 11 ऑक्सीजन प्लांट ही लगे और उनमें से सिर्फ पांच ही चालू हो पाए.
बाद में केंद्र सरकार ने भी माना कि 162 ऑक्सीजन प्लांट्स में से सिर्फ 33 प्लांट्स ही लग पाए हैं. इनके चालू होने की बात तो खुद केंद्र सरकार ने भी नहीं कही. अगर यह जमीनी हकीकत है तो संसद में सरकार ने जिस सक्रिय निगरानी का दावा किया था, वह क्या कागजों में हो रही थी?
Out of 162 PSA plants sanctioned by Govt of India, 33 have already been installed – 5 in MP, 4 in Himachal Pradesh, 3 each in Chandigarh, Gujarat & Uttarakhand, 2 each in Bihar, Karnataka & TL; and 1 each in AP, CG, Delhi, Haryana, Kerala, Maharashtra, Puducherry, Punjab & UP.
— Ministry of Health (@MoHFW_INDIA) April 18, 2021
राज्यों को सलाह को खुद केंद्र ने कितना माना
ऑक्सीजन प्लांट और दवाओं के अकाल का भोगा हुआ सच जनता के सामने है. अब बात करते हैं कोरोना से बचाव के उपायों के बारे में. संसद में अपने इसी जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने कहा था कि सभी राज्य सरकारों को (1) सभी हितधारकों के साथ तालमेल करके मिशन मोड पर नियंत्रणकारी उपायों को सख्ती से लागू करने, (2) निगरानी, संपर्कों का पता लगाने और जांच को बढ़ाने, (3) कोविड से बचाव मददगार व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए आईईसी अभियान को सघन बनाने, (4) मामलों में वृद्धि के लिए अस्पतालों की पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने, (5) मामलों को समय पर रेफर करके और उचित इलाज के जरिए मौतों को न्यूनतम करने (6) कोविड टीकाकरण अभियान को तेज करने की सलाह दी गई है.
लेकिन जब केंद्र सरकार संसद में यह जानकारी दे रही थी, उसके पहले से उसके प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और दूसरे मंत्री चुनाव वाले राज्यों में इसका उल्लंघन कर रहे थे. मार्च से अप्रैल तक की चुनाव प्रचार रैलियों और उनमें जुटते हजारों लोगों की तस्वीरें बताती हैं कि कैसे राज्यों को दी गई सलाह की खुद सरकार में बैठे लोगों ने परवाह नहीं की, विपक्ष और दूसरे दल तो दूर की बात हैं. इससे जुड़े कुछ ट्वीट अंत में दिए गए हैं. स्पष्ट करना जरूरी है कि कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन में विपक्षी दल पीछे या कम भागीदार नहीं थे. यह अलग बात है कि अप्रैल के आखिरी हफ्ते में कांग्रेस ने कोरोना के बढ़ते मामलों के आधार पर अपनी रैली रद्द करके सत्ताधारी बीजेपी को भी ऐसा कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया.
हालांकि, चुनाव प्रचार में जिम्मेदार शीर्ष नेताओं के गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार ने आम जनता के बीच कोरोना का खतरा टलने का संदेश दे दिया. नेताओं की देखा-देखी जनता भी लापरवाह हो गई. सरकारें और राजनीतिक दल चुनावों से फुरसत पाकर इस बारे में कुछ सोचते, इससे पहले ही कोरोना वायरस ने पूरी ताकत से हमला बोल दिया. इसमें लचर स्वास्थ्य सेवाओं और इसे सुधारने में सरकारों की गैर-जिम्मेदारी ने आग में घी डालने का काम किया.
नोट- स्वास्थ्य संविधान की व्यवस्था में राज्य का विषय है, लेकिन इसमें हमेशा से केंद्र की दखल रही है. इतना ही नहीं, बेहद सीमित संसाधनों वाले राज्यों पर कोरोना जैसी महामारी से निपटने की जिम्मेदारी डालना, अपनी जिम्मेदारी से भागने जैसा कदम है.
Yesterday WhatsApp, Instagram & Facebook were down for 50-55 min, everybody got worried. But in Bengal, development, & dreams have been down for 50-55 years. First, it was Congress, then Left, and now TMC, who've blocked state's development: PM Modi in Kharagpur, West Bengal pic.twitter.com/wy9P93nqcF
— ANI (@ANI) March 20, 2021
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Didi, even the children of West Bengal have understood your 'khela'. Thus on May 2, West Bengal will show door to Didi: PM Narendra Modi in Contai. #WestBengalElections2021 pic.twitter.com/PIqfumXh61
— ANI (@ANI) March 24, 2021
#NewsAlert: Bengal wants peace, progress and development. On one hand, there is anti-Bengal Congress-Left and TMC, and on the other hand, it is the people of West Bengal who want change: PM Modi in Kolkata#WestBengalElections2021
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Moments before the Bankura rally. Humbled by the enthusiasm. pic.twitter.com/6A7pF0jaeG
— Narendra Modi (@narendramodi) March 21, 2021
Recently, you (Mamata Banerjee) appealed for Muslim unity & said their votes should not divide. It shows that Muslim vote bank, which you considered as your strength, has slipped out of our hands. It shows that you have lost the poll: PM Modi in Cooch Behar, West Bengal pic.twitter.com/R2PA8rUEhA
— ANI (@ANI) April 6, 2021
Those close to Didi are saying those who vote for BJP will be thrown out of the state. Is that acceptable to you? Respected Didi if you have anger direct it towards me, abuse me. Don't insult the dignity of people of Bengal: Modi in Bardhaman West Bengal pic.twitter.com/udag6gREPB
— Smita Prakash (@smitaprakash) April 12, 2021