राज्य सभा में गुरुवार को नेशनल बैंक फॉर फाइनेंसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट बिल-2021 (The National Bank For Financing Infrastructure and Development Bill- 2021) पर चर्चा हुई. एनबीएफआईडी बिल (NaBFID Bill-2021) पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सांसद और कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने कई सवाल उठाए. उन्होंने बताया कि देश में विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) पहले से काम कर रहे हैं. देश में पहली डीएफआई (DFI) को मार्च 1948 को तत्कालीन संसद, यानी संविधान सभा (Constituent Assembly) से पारित आईएफसीआई एक्ट के तहत बनाया गया. उस समय आर. के. षणमुखम चेट्टी (R.K. Shanmukham Chetty) वित्त मंत्री थे.
वहीं, 1955 में कार्यकारी आदेश से आईसीआईसीआई का गठन हुआ, जो पूरी तरह से निजी संस्था थी. इसके बाद 1964 इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (Industrial Development Bank of India), जनवरी 1981 में नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डवलपमेंट (National Bank for Agriculture and Rural Development) और नवंबर, 1989 में सिडबी (SIDBI) यानी स्माल इंडस्ट्रीज डवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (Small Industries Development Bank of India) बने. इन तीनों डीएफआई को संसद में लंबे विचार-विमर्श के बाद पारित कानूनों से बनाया गया था.
नरसिम्हन समिति का गठन क्यों हुआ था?
सांसद जयराम रमेश ने कहा कि अब डीएफआई (DFI) का जमाना बीत चुका है. उन्होंने 1991 में तत्कालीन वित्तमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की ओर से वित्तीय क्षेत्र के लिए गठित नरसिम्हन समिति का हवाला दिया, जिसने 17 दिसंबर 1991 को संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. जयराम रमेश ने कहा कि इस समिति ने कहा था कि डीएफआई ने निश्चित तौर पर भारत के औद्योगीकरण में बड़ी भूमिका निभाई है, लेकिन अब इससे आगे बढ़ने की जरूरत है.
सांसद जयराम रमेश ने आगे कहा कि इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही कंपनी एक्ट के तहत 1996 में आईडीएफसी (IDFC) और 2006 में आईआईएफसीएल (IIFCL) (India Investment Infrastructure Finance Company) का गठन किया गया. उन्होंने यह भी कहा, ‘हमने वैधानिक संस्थान (statutory organizations) नहीं बनाए. हमने कंपनी एक्ट (Companies Act) के तहत कंपनियां बनाई. यह मॉडल हमने अपनाया था. डॉ. मनमोहन सिंह के बजट के 30 साल बाद घड़ी की सुइयां उलटा घूम रही हैं और हम लोग डीएफआई की तरफ जा रहे हैं.’ उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पूछा कि कंपनी एक्ट के तहत कंपनी की जगह संसद से पारित कानून से वैधानिक संस्था क्यों बनाई जा रही है?
सीएजी की निगरानी से भागने की वजह क्या है
सांसद जयराम रमेश ने राष्ट्रीय वित्तीय बुनियादी ढांचे और विकास बैंक विधेयक-2021 (The National Bank For Financing Infrastructure and Development Bill- 2021) को महत्वाकांक्षी विधेयक बताया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से बजट भाषण में दी गई जानकारियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस कंपनी की शुरुआती पेड-अप कैपिटल (paid-up capital) एक लाख करोड़ रुपये की होगी और जिसमें शायद सरकार का हिस्सा 26 फीसदी नहीं होगा, क्योंकि बजट में सरकार ने सिर्फ 20 हजार करोड़ रुपये ही दिए हैं. उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से यही मेरा सवाल है. यह सरकारी कंपनी है. बड़े पैमाने पर संसाधनों को जुटाया जाना है. लेकिन कोई निगरानी नहीं हैं, न सीबीआई (CBI), न सीवीसी (CVC) और न सीएजी (CAG) यानी कैग. सीबीआई और सीवीसी न होने की बात मैं समझ सकता हूं, लेकिन सीएजी क्यों नहीं?’
सीएजी की रिपोर्ट देने की दर क्यों घट गई?
सांसद जयराम रमेश ने अपने भाषण में सीएजी (CAG) की सक्रियता घटने का भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा, ‘बीते पांच साल में सीएजी रिपोर्ट की संख्या में नाटकीय तौर पर गिरावट आई है. 2014 में सीएजी ने 55 रिपोर्ट पेश की थी. 2020 में 14 रिपोर्ट ही पेश की. सीएजी संवैधानिक संस्था है. लोक लेखा समिति संसद की सबसे महत्वपूर्ण संसदीय समिति है.’ सांसद जयराम रमेश ने आगे कहा, ‘यह जो संस्थान हम बना रहे हैं, जिसकी पेड-अप कैपिटल एक लाख करोड़ रुपये है, सरकार का हिस्सा 26 प्रतिशत है, जिसका कर्ज का ढांचा पांच लाख करोड़ रुपये है. कोई बाहरी चौकसी नहीं, कोई बाहरी सतर्कता नहीं, कोई निगरानी नहीं. वित्त मंत्री महोदया, मेरा आपसे कहना है कि यह बहुत ही अवांछित स्थिति है.’
जब निगरानी नहीं, तो कर्ज के पीछे सरकार की गारंटी क्यों?
सांसद जयराम रमेश ने एक और अहम सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार इस प्रस्तावित सरकारी कंपनी की निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है, दूसरी तरफ डिफाल्ट होने पर सरकार गारंटी (sovereign guarantee) दे रही है. उन्होंने कहा, ‘इसके पीछे का तर्क समझ से परे है.’ उन्होंने कहा कि बिना सही से परखे और सीएजी की निगरानी व्यवस्था को शामिल किए बगैर विधेयक को पारित करना अच्छा विचार नहीं है. सांसद जयराम रमेश ने आगे कहा, ‘विधेयक में अच्छी नीयत (Good Faith) से काम करने की शब्दावली का उल्लेख है, जिसके आधार पर बाहरी निगरानी न होने को सही ठहराया गया है. लेकिन अच्छी नीयत को कौन पारिभाषित करेगा? क्या शर्तें रखी जाएंगी? एक व्यक्ति अच्छी नीयत का, दूसरा व्यक्ति बुरी मंशा का भी हो सकता है. इसे कौन तय करेगा?’ उन्होंने विधेयक में इस बात को स्पष्ट करने की मांग उठाई.
एलआईसी और आईआईएमसीएल को क्या हुआ?
सांसद जयराम रमेश ने बुनियादी ढांचे की फंडिंग के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) (LIC) और आईआईएफसीएल (IIFCL) के होते हुए नई वित्तीय संस्था बनाने की वजह भी पूछे. उन्होंने पूछा, ‘अन्य संस्थानों को क्या हुआ, एलआईसी और आईआईएफसीएल को क्या हुआ जो बुनियादी ढांचे के लिए पैसे देता है?’
सांसद जयराम रमेश ने पूछा, ‘क्या हम कोई विशाल संगठन बना रहे हैं, जिसमें ये सारी संस्थाएं हिस्सा होंगी? क्या हम सिंगापुर की कंपनी टेमासेक (Temasek) जैसी कोई कंपनी बना रहे हैं? क्या हम विशाल टेमासेक (Temasek) बना रहे हैं? सिंगापुर की राजनीतिक अर्थव्यवस्था (political economy) भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से अलग है. आप हमारी तरह के लोकतांत्रिक राजनीतिक ढांचे में टेमासेक जैसे संगठन को नहीं रख सकते हैं.’
विदेशी पूंजी से बुनियादी ढांचा नहीं बनता है
सांसद जयराम रमेश ने यह भी कहा कि विदेशी पूंजी से देश का बुनियादा ढांचा खड़ा नहीं होता है, बल्कि इसके लिए घरेलू पूंजी सबसे ज्यादा मुफीद होती है. उन्होंने कहा, ‘आर्थिक इतिहास दिखाता है कि विदेशी पूंजी ने किसी देश में बुनियादी ढांचा कभी नहीं बनाया है. भारतीय ढांचा भारतीय पूंजी से खड़ा होगा. विदेशी पूंजी की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. हमें वैश्विक पूंजी जरूर जुटानी चाहिए. लेकिन ढांचागत विकास के लिए विदेश पूंजी को पहले स्थान पर रखना, मेरे ख्याल से यह बिल्कुल गलत है.’ उन्होंने इसके लिए घरेलू बचत बढ़ाने और उसे घरेलू निवेश में बदलने का सुझाव भी दिया.
घरेलू बचत घट क्यों रही है?
सांसद जयराम रमेश ने देश में घरेलू बचत की दर में आने वाली गिरावट की तरफ भी ध्यान खींचा. उन्होंने कहा, ‘भारत की सकल घरेलू बचत की दर बहुत तेजी से नीचे आई है. 10-12 साल साल पहले यह जीडीपी (GDP) के 38 फीसदी के बराबर थी, और अब यह जीडीपी के 30-31 फीसदी के बीच है. मैं मात्रा की नहीं, दर की बात कर रहा हूं. इसकी दर में गिरावट आई है.’ सांसद जयराम रमेश ने कहा कि घरेलू बचत को बढ़ाना होगा और विदेशी पूंजी पर खतरनाक निर्भरता को रोकना होगा. इसकी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 30 साल, 40 साल और 50 साल के लिए पैसों की जरूरत होती है.
विधेयक पर सही से विचार-विमर्श नहीं हुआ है
सांसद जयराम रमेश ने विधेयक को संसद की सेलेक्ट कमेटी को भेजे बगैर राज्य सभा में पेश करने पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि विधेयक जरूरी जांच प्रक्रिया से नहीं गुजरा है, इस पर कोई खास चर्चा नहीं हुई है, इस विधेयक को लेकर बहुत से सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं. हालांकि, गुरुवार को लगभग दो घंटे की चर्चा के बाद राज्य सभा ने एनबीएफआईडी बिल (NaBFID Bill-2021) को पारित कर दिया.
What happens to other organisations? What happens to LIC, IIFCL etc. Are we creating a gigantic organisation of which all these other organisation will be part of: Shri @Jairam_Ramesh on National Bank for Financing Infrastructure and Development Bill, 2021 pic.twitter.com/I1uLwmr1VK
— Congress (@INCIndia) March 26, 2021