किसानों ने अपनी मेहनत से देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया है. इतना आत्मनिर्भर कि सरकारें गोदाम खाली न होने का बहाना देकर अनाज खरीदने से इनकार कर रही हैं. लेकिन एक तल्ख हकीकत यह भी है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक भुखमरी सूचकांक) में भारत 107 देशों की सूची में 94वें स्थान पर आया है. इसका मतलब है कि हमारे देश में भुखमरी की समस्या इतनी विकराल है कि हम सिर्फ 13 देशों से ही बेहतर प्रदर्शन कर पाए हैं. अब इस भुखमरी का सीधा असर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पड़ रहा है.
बच्चों के कुपोषण पर संसद में क्या बात हुई
बच्चों के कुपोषण की समस्या का सवाल संसद के मानसून सत्र में सांसद राहुल कस्वां ने उठाया. उन्होंने पूछा कि (1) क्या विश्व में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में है? (2) क्या सरकार को पता है कि तीन वर्ष से कम आयु के 44 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं? (3) अगर हां तो राजस्थान सहित अन्य राज्यों का ब्योरा क्या है? (4) उन राज्यों का नाम और ब्यौरा जहां कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है?
सरकार ने क्या जवाब दिया?
सांसद राहुल कस्वां के इन सवालों का केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जवाब दिया. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-3 (एनएफएचएस) के मुताबिक 2005-06 में 44.9 फीसदी बच्चे ठिगने और 40.4 फीसदी बच्चे कम वजन के थे, जिसमें बाद के दिनों में कमी आई. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि 2015-16 में हुए एनएफएचएस -4 के मुताबिक पांच साल से कम उम्र वाले 35.7 फीसदी बच्चे कम वजन के, जबकि 38.4 फीसदी बच्चे ठिगने यानी उम्र के हिसाब से कम लंबाई वाले थे। वहीं, साल 2015-16 में हुए व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण में इसमें सुधार होने के संकेत सामने आए. इसमें कम वजन वाले बच्चों की संख्या 33.4 फीसदी और कम लंबाई वाले बच्चों की संख्या 34.7 फीसदी रही.
कहां सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे
सांसद राजीव कस्वां के चौथे सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया कि मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मेघालय में तीन साल से कम आयु बच्चों में कम वजन की समस्या सबसे ज्यादा है. वहीं, ठिगनेपन या कम लंबाई वाले बच्चों में छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और मेघालय राज्यों में सबसे आगे हैं.
सरकारी आंकड़ें उलझे हुए हैं
हालांकि, 2005-06 और 2015-16 में किए गए सर्वेषण में कुछ सुधार जरूर दिखाई देता है. लेकिन इससे तस्वीर साफ नहीं होती है, क्योंकि दोनों में अलग-अलग उम्र यानी पहले तीन साल और पांच साल के बच्चों को शामिल किया गया है. अलग-अलग आयु वर्ग के बीच तुलना से आंकड़े भले सुधर गए हैं लेकिन जमीनी हकीकत नहीं बदली है.
पाकिस्तान और नेपाल से भी बुरा हाल
ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट के मुताबिक, भारत की 14 फीसदी आबादी कुपोषण की शिकार है. इसलिए भारत को 94वां स्थान मिला है, जबकि पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 88वें, बांग्लादेश 75वें, म्यांमार 78वें और नेपाल 73वें स्थान हैं. जीएचआई रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शऩ अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र के बराबर रहा. अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में भीषण कुपोषण की वजह कम अनाज उत्पादन को माना जाता है. यूनिसेफ के मुताबिक, भारत में पांच साल से कम आयु के 69 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से होती है. साल 2019 में आई रिपोर्ट बताती है कि भारत में छह महीने से 23 महीने तक की आयु के सिर्फ 42 फीसदी बच्चों को ही पर्याप्त मात्रा में भोजन और 21 फीसदी को अलग-अलग तरह का भोजन मिल पाता है.
बंपर अनाज उत्पादन तो कुपोषण क्यों
भारत में न केवल आय की असमानता बहुत ज्यादा है, बल्कि संसाधनों बंटवारा भी बहुत असमान है. यही वजह है कि अनाज की बंपर उपलब्धता होने के बावजूद आर्थिक रूप से कमजोर तबका अपनी खुराक भर का अनाज नहीं जुटा पाता है. अब अगर खाद्य सुरक्षा कानून की बात करें तो इसके तहत जो अनाज मिलता है, उससे संपूर्ण आहार नहीं बनता है. महज गेहूं और चावल या कुछ जगह पर दाल से कुपोषण के खिलाफ नहीं लड़ा जा सकता है. हालांकि, सरकार का दावा है कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए समेकित बाल विकास योजना चलाई जा रही है. इसके अलावा पोषण अभियान की भी शुरुआत की गई है.
कोरोना-कुपोषण का मेल घातक
हालांकि, जिस तरह से कोरोना संकट और लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है, उससे आने वाले दिनों में कुपोषण और भुखमरी की समस्या बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसकी वजह है कि लोगों की आमदनी बुरी तरह से गिरी है, जिससे लोग खाने-पीने में कटौती करने को मजबूर हो रहे हैं. इसके अलावा खाद्य वस्तुओं की महंगाई भी कुपोषण को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा रही है. ऐसे में कोरोना संक्रमण का कुपोषण से संयोग हालात को घातक बना सकता है.
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