संसद का मानसून सत्र तो चलेगा, लेकिन प्रश्नकाल नहीं होगा. शून्यकाल भी महज 30 मिनट का होगा. सांसदों को निजी सदस्य विधेयक पेश करने की इजाजत नहीं होगी. सरकार ने इन शर्तों के साथ संसद बुलाने की वजह लगातार फैल रहे कोरोना संकट को बताया है. लेकिन कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल इसे सांसदों के लोकतांत्रिक अधिकारियों पर हमला करार दे रहे हैं. उनका कहना है कि यह कदम को संसद में विपक्ष और जनता की आवाज को दबाने का प्रयास है.
बीते गुरुवार को कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि प्रश्नकाल का निलंबन करके लोकतंत्र का गला घोटने और संसदीय प्रक्रिया को खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी. हम इसका संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह पर पुरजोर विरोध करेंगे.’
वहीं, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद कुंवर दानिश अली ने ट्विटर पर लिखा, ‘ट्वीट करें तो अवमानना, सड़क पर सवाल करें तो देशद्रोह. देश की सबसे बड़ी पंचायत बची थी जनता के सवालों को उठाने के लिए. लेकिन वहां सरकार ने प्रश्नकाल ही ख़त्म कर दिया. ‘ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी’. यह है ‘नए भारत की डरावनी तस्वीर’!’
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने भी ट्विटर पर लिखा, ‘पीएम मोदी ने प्रश्नकाल और गैर-सरकारी कामकाज को निलंबित करा दिया. कोरोना संकट के समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी हाउस ऑफ कॉमंस में साप्ताहिक प्रश्नकाल का सामना किया. नरेंद्र मोदी नहीं चाहते कि विपक्ष कोई पूछताछ करे.’ उन्होंने आगे लिखा, ‘संविधान के अनुच्छेद 85 के तहत छह महीने के भीतर संसद की बैठक होना अनिवार्य है. संसद 23 मार्च को बंद हुई थी, इसलिए हर हाल में 22 सितंबर को बैठक जरूरी है. इसलिए न चाहते हुए भी नरेंद्र मोदी ने 16 सितंबर को संसद की बैठक बुलाई है.’ अन्य ट्वीट में पूर्व सीएम ने कहा, ‘इंटरनेशन पार्लियामेंटरी यूनियन(IPU) के आंकड़ों के मुताबिक, महामारी के दौरान 105 देशों में संसद की कार्यवाही जारी रही. केवल भारत और रूस की संसद ने कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित करने के बाद एक भी बैठक नहीं की.’
मानसून सत्र में प्रश्नकाल निलंबित करने पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रवक्ता महेश तापसे ने कहा कि भाजपा ने कोरोना संकट को प्रश्नकाल निलंबित करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल किया है.
कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से लोक सभा सदस्य शशि थरूर ने भी प्रश्नकाल निलंबित करने को लेकर तीखा हमला बोला है. ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ‘मैंने चार महीने पहले कहा था कि तानाशाह नेता महामारी को लोकतंत्र और असहमति का दम घोंटने की कोशिश करेंगे. देर से बुलाए गए संसद सत्र का नोटिफिकेशन बताता है कि प्रश्नकाल नहीं होगा. हमें सुरक्षित रखने के नाम पर इसे कैसे सही ठहराया जा सकता है?’
लोकसभा सांसद शशि थरूर ने आगे कहा, ‘सरकार से सवाल पूछना संसदीय लोकतंत्र का ऑक्सीजन है. सरकार संसद को एक नोटिस बोर्ड की हद तक सीमित कर देना चाहती है. और अपने भारी-भरकम बहुमत को जो चाहे उसे पारित करने के लिए रबड़ स्टाम्प के तौर पर इस्तेमाल करती है. (सरकार की) जवाबदेही तय करने वाली एक और व्यवस्था को छीन लिया गया.’
हालांकि, शिवसेना के नेता संजय राउत ने सांसद के आगामी मानसून सत्र में प्रश्नकाल न कराने के कदम का समर्थन किया है. उन्होंने कहा, ‘भले ही संसद के मानसून सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसा क्यों है? यह एक आपातकालीन स्थिति है. हमें समझने की जरूरत है, न कि आलोचना करने की.’
सरकार ने भी प्रश्नकाल को निलंबित करने के फैसले का बचाव किया है. उसका कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा. इससे पहले 2004 और 2009 में भी प्रश्नकाल नहीं हुआ था. इसके अलावा 1991, 1962,1975 तथा 1976 में भी प्रश्नकाल नहीं हुआ था.
राज्य सभा के एक आकलन के मुताबिक, बीते पांच साल में प्रश्नकाल के 60 फीसदी समय का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया है.