केंद्र सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल ने संसद में कृषि विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया है. पार्टी ने राज्य सभा में इन विधेयकों के खिलाफ वोटिंग के लिए अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है. अभी ऊपरी सदन में इसके तीन सदस्य-नरेश गुजराल, बलविंदर सिंह भुंडर और सुखदेव सिंह ढींगरा हैं.
दरअसल, शिरोमणि अकाली दल ने सरकार से किसानों की आशंकाओं को दूर कर लेने तक कृषि अध्यादेशों की जगह लेने वाले कृषि विधेयकों को संसद में न पेश करने के लिए कहा था. लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और मानसून सत्र के पहले ही दिन विधेयकों को पेश कर दिया.
इस बीच पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में किसानों का विरोध तेज हो गया है. पंजाब के किसानों ने इस पर तीखी नाराजगी जताई है. इसे देखते हुए शिरोमणि अकाली दल ने कृषि विधेयकों पर अपने रुख को कड़ा कर लिया है. बुधवार को पार्टी प्रमुख सुखवीर सिंह बादल ने कहा, ‘इन विधेयकों को पेश करने से पहले कम से कम उन पार्टियों से तो बात करनी ही चाहिए थी, जो वास्तव में किसानों की पार्टी और सहयोगी हैं. जब इस मामले को कैबिनेट में लाया गया था, तब भी हमारी मंत्री, हरसिरमरत कौर, ने इस पर अपना ऐतराज जताया था.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी किसानों के हितों को बचाने के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार है.
शिरोमणि अकाली दल मंगलवार को लोक सभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक के खिलाफ मतदान कर चुकी है. इस पर चर्चा में भाग लेते हुए फिरोजपुर से लोक सभा सांसद सुखबीर सिंह बादल ने कहा था, ‘किसानों की पार्टी होने के नाते अकाली दल ऐसी किसी चीज का समर्थन नहीं कर सकती है जो देश के अन्नदाताओं के खिलाफ है, खास तौर पर पंजाब के. इसलिए आज लोक सभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 का विरोध करते हैं.’
केंद्र सरकार 5 जून को कृषि से जुड़े तीनों अध्यादेशों को लाई थी.
इसमें कृषि उत्पाद मंडी समिति कानून यानी एपीएमसी एक्ट को मंडी परिसर तक सीमित करने, कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग को मंजूरी और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कृषि उत्पादों के लिए स्टॉक लिमिट की शर्त को हटाने के अध्यादेश शामिल थे. केंद्र सरकार के इस कदम पर किसानों, आढ़तियों, मंडी कर्मचारियों और राज्य सरकारों ने गंभीर सवाल उठाए हैं.
किसान का आरोप है कि सरकार इन विधेयकों के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद से पीछे हटने और कृषि क्षेत्र को कार्पोरेट्स के हवाले करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. उनका कहना है कि सरकार ने नए अध्यादेश से निजी मंडियों को टैक्स से छूट दी है, जबकि एपीएमसी एक्ट के तहत पहले से काम कर रही मंडियों में टैक्ट लगता है, ऐसे में एपीएमसी मंडियां इन नई मंडियों का सामना नहीं कर पाएंगी.
किसानों की आशंका है कि जब एक दिन एपीएमसी मंडियां खत्म हो जाएंगी, तब सरकार अनाज खरीदने की व्यवस्था न होने की दलील देकर फसलों को एमएसपी पर खरीदने से इनकार कर देगी. किसान इसके लिए मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हैं. यहां की शिवराज सरकार ने इस साल यह कहते हुए मूंग की खरीद करने से इनकार कर दिया कि उसके गोदाम खाली नहीं है, उसमें गेहूं भरा है. अपनी ऐसी ही आशंकाओं को दूर करने के लिए किसान सरकार से फसलों की एमएसपी पर खरीद की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.
किसानों की तरह आढ़तियों की चिंता भी पुरानी मंडी व्यवस्था खत्म होने और नई मंडी व्यवस्था में कंपनियों के उतरने के बाद बढ़ने वाले जोखिम से जुड़ी है.
वहीं, राज्यों की शिकायत है कि कृषि और मंडी उनके अधिकार के विषय हैं, जिसमें कानून बनाकर केंद्र ने उनके अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी की है. तीनों कृषि विधेयकों को लेकर कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने हाल में सिलसिलेवार 10 ट्वीट किए. उन्होंने लिखा, ‘खेती व मंडियां संविधान की 7वें शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते हैं.परंतु मोदी सरकार ने प्रांतों से राय करना तक उचित नहीं समझा. खेती का संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है, परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई.’
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आगे लिखा, ‘कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट लागू करना चाहती है, ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े व सालाना 80 हजार से 1 लाख करोड़ की बचत हो. इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा.’
एक देश-एक बाजार से किसानों को फायदा मिलने के दावे पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस प्रवक्ता ने लिखा, ‘मोदी सरकार का दावा- अब किसान अपनी फसल देश में कही भी बेच सकता है,पूरी तरह सफेद झूठ है. कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86% किसान 5 एकड़ से कम भूमि का मालिक है. ऐसे में 86% किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कहीं और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता, न बेच सकता है.’
हालांकि, सरकार की दलील है कि उसे अंतरराज्जीय व्यापार पर कानून बनाने का अधिकार हासिल हैं.
उसका यह भी कहना है कि इन विधेयकों के जरिए होने वाला कृषि सुधार किसानों को लाभ पहुंचाएगा, वे अपनी फसलों को देश में कहीं भी बेच पाएंगे और उसकी कीमत तय कर पाएंगे.
शिरोमणि अकाली दल के खुले विरोध के बीच बीजेपी अध्यक्ष और राज्य सभा सांसद जेपी नड्डा ने विधेयकों से जुड़ी सभी शिकायतें दूर कर लेने की बात कही है. उन्होंने यह भी कहा है कि मोदी सरकार की ओर से लाए गए तीनों विधेयक दूरदर्शी हैं, जो कषि की उत्पादकता बढ़ाने और निवेश लाने में मदद करेंगे. कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस का इन विधेयकों का विरोध राजनीति के अलावा कुछ नहीं है, इनके घोषणापत्र में भी वही वादा किया गया था, जो मोदी सरकार इन विधेयकों के जरिए कर रही है.
3.मोदी सरकार का दावा- अब किसान अपनी फसल देश में कही भी बेच सकता है,
पूरी तरह सफेद झूठ हैकृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86% किसान 5acre से कम भूमि का मालिक है
ऐसे में 86% किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कही और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता न बेच सकता
3/10 pic.twitter.com/VVdVa6AT1m— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) September 12, 2020