सरकारी सेवाओं और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण व्यवस्था लागू है. लेकिन मेडिकल सीटों में राज्यों द्वारा दिए जाने वाले अखिल भारतीय कोटा में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता. इसके चलते देश में हर साल तकरीबन तीन हजार मेडिकल सीटें पर ओबीसी छात्रों को दाखिला नहीं मिल पाता है.
अखिल भारतीय कोटा क्या है?
किसी भी राज्य में मेडिकल की 15 फीसदी सीटों को अखिल भारतीय कोटा में शामिल किया जाता है, जिस पर दूसरे राज्यों के छात्रों के अलावा अप्रवासी भारतीयों, प्रवासी भारतीयों, भारतीय मूल के व्यक्तियों और विदेशी नागरिकों को दाखिला दिया जाता है.
अखिल भारतीय कोटा में ओबीसी आरक्षण का सवाल
इसी अखिल भारतीय कोटे के तहत ओबीसी आरक्षण का मुद्दा संसद के मानसून सत्र में सांसद टीआर बालू, एकेपी चिनराज और एस जगतरक्षकन ने लोक सभा में उठाया था. उन्होंने सरकार से पूछा था, (1) क्या सरकार ने मद्रास उच्चन्यायालय के फैसले का संज्ञान लिया है, जिसमें कहा गया है कि राज्यों द्वारा प्रदान किए जाने वाले अखिल भारतीय कोटा से मेडिकल कॉलेज के दाखिले में ओबीसी आरक्षण देने में कोई बाधा नहीं है और 50 फीसदी आरक्षण देने के लिए एक समिति का गठन किया जाना चाहिए? अगर हां, तो सरकार ने अब तक क्या कार्रवाई की है? (2) क्या प्रस्ताव की जांच करने के लिए कोई समिति गठित की गई है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है? (3) क्या 2013 से मेडिकल कॉलेज में इस तरह के प्रवेश में ओबीसी आरक्षण नहीं दिया गया है, अगर हां तो इसके क्या कारण हैं और क्या सरकार का शैक्षणिक वर्ष 2020-21 से आरक्षण देने का विचार है?
आरक्षण का लाभ सिद्धांतों तक सिमटा
लोक सभा में इन सवालों का जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने दिया. उन्होंने बताया कि मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश पर सितंबर में ही एक कमेटी बना दी गई है. सर्वोच्च न्यायालय (दिनेश कुमार अन्य अन्य बनाम मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज, इलाहाबाद) सहमति से बनी अखिल भारतीय कोटा स्कीम के अनुसार इसमें साल 1987 से एमबीबीएस और पीजी मेडिकल कोर्स दोनों में कोई आरक्षण नहीं दिया जा रहा है. हालांकि, केंद्रीय शिक्षण संस्थाएं (प्रवेश और आरक्षण) अधिनियम-2006 के तहत केंद्रीय शिक्षण संस्थाओं में साल 2009 से 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण निर्धारित किया गया है.
सरकार पर टाल-मटोल के आरोप
केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया कि यूजी/पीजी मेडिकल सीट में ओबीसी आरक्षण के लिए सरकार ने सक्रिय कार्रवाई की है. दरअसल, सरकार लंबे समय से इस मामले में टाल-मटोल करती रही है. सरकार की दलील है कि प्रत्येक राज्य में आरक्षण के लिए नियम अलग-अलग है, जिसके चलते वह एक समान आरक्षण नहीं लागू कर सकती. हालांकि, यह बात सही नहीं है. वास्तव में एससी-एसटी आरक्षण की भी सभी राज्यों में एक जैसी स्थिति नहीं है. इसके बावजूद ऑल इंडिया कोटा के तहत मेडिकल सीटों के पीजी कोर्स में उन्हें एक समान आरक्षण मिल रहा है.
आरक्षण देने का रास्ता क्या है?
तमिलनाडु में राज्य सरकार और सभी मुख्य विपक्षी पार्टियों ने मेडिकल सीटों में 27 फीसदी आरक्षण के लिए पहले मद्रास हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट तक मामले को उठाया. लेकिन केंद्र ने इस साल आरक्षण को लागू करने में अपने हाथ खड़े कर दिये. ऐसा भी नहीं है कि मेडिकल सीटों पर आरक्षण का नियम लागू करने के लिए केंद्र सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है. सेंट्रल कोटा के तहत एससी-एसटी को आरक्षण का लाभ देने के मामले में पहले ही ऐसा किया जा चुका है.
देश भर के मेडिकल कॉलेजों में सेंट्रल कोटा के तहत पीजी कोर्सेस में एससी को 15 फीसदी और एसटी को 7.5 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है. यह व्यवस्था साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद बनाई गई थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने फैसले में 50 फीसदी सीटों को आरक्षण के तहत लाने को सही ठहराया था. अब सरकार ओबीसी के मामले में भी सरकार ऐसा कर सकती है. लेकिन वह लगातार अदालत में लंबित मामलों और राज्य सरकारों के नियमों को बहाने की तरह इस्तेमाल कर रही है, जिससे ओबीसी वर्ग के छात्रों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पा रहा है.
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