Connect with us

Hi, what are you looking for?

पंचायतनामा

कैसे कोरोना संकट में सांसदों की भूमिका ग्राम प्रधानों से भी कमजोर हो गई है?

देश में कोरोना से एक लाख 31 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, लोग बेहतर इलाज से लेकर दूसरी समस्याओं में मदद के लिए अपने सांसदों की तरफ देख रहे हैं, लेकिन उनके हाथ खाली हैं.

कोरोना संकट में एमपीलैड्स पर रोक का सांसदों की भूमिका पर क्या असर पड़ा है

सांसद और ग्राम प्रधान में तुलना पहली नजर में हास्यास्पद लग सकती है. लेकिन कोरोना संकट की यही हकीकत है कि सांसदों की भूमिका ग्राम प्रधानों से भी कमजोर पड़ गई है. प्रधान और दूसरे प्रतिनिधियों के पास जहां विकास कार्य कराने से लेकर कोरोना संकट से निपटने के उपाय करने के लिए पर्याप्त बजट है, वहीं सांसदों के पास ना तो सांसद निधि यानी एमपी लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड (एमपीलैड्स) बचा है और न ही दूसरा कोई बजट.

सांसद निधि पर कोरोना की मार

दरअसल, केंद्र सरकार ने कोरोना संकट से निपटने के लिए मई 2020 में ही सांसद निधि (MPLADS) को अगले दो साल यानी वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 के लिए स्थगित कर दिया है. सरकार का कहना है कि इस पैसे को कोरोना महामारी और अर्थव्यवस्था पर इसके असर से निपटने में खर्च किया जाएगा. यही वजह है कि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए अब तक एमपीलैड में एक भी रुपया नहीं आया है. इतना ही नहीं, 2019-20 में 31 मार्च तक जारी होने वाली राशि को भी रोक दिया गया है. सांसदों से जिलाधिकारियों के पास पड़े एमपीलैड्स फंड के इस्तेमाल को लेकर प्राथमिकताएं तय करने के लिए कहा गया है ताकि पहले से चल रहे काम आधे-अधूरे न लटके रहें.

एमपीलैड्स क्या है

विकास कार्यों का विकेंद्रीकरण हो और इसमें जनप्रतिनिधि के रूप में सांसदों की भागीदारी आए, इस मकसद से सांसद क्षेत्र विकास निधि योजना (एमपीलैड्स) को शुरू किया गया था. इसके तहत सांसद को अपने क्षेत्रों में बुनियादी कार्य कराने की सिफारिश करने का अधिकार होता है. इसके हिसाब से जिला प्रशासन विकास कार्यों को कराता है. यानी सांसद निधि के मामले में सांसद की भूमिका सिर्फ और सिर्फ सलाहकारी है. लेकिन यह उन्हें एक जनप्रतिनिधि के रूप में स्थानीय जरूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाता है.

ये भी पढ़ेंसांसदों-मंत्रियों का वेतन काटने वाला विधेयक राज्य सभा से पारित

यही वजह है कि जब एमपीलैड्स को रोका गया तो विपक्षी दलों के सांसदों ने इस पर सवाल उठाया. कहा जा रहा है कि जब कोरोना संकट से निपटने के लिए स्थानीय जरूरत के हिसाब से काम करने की जरूरत है, तब सरकार ने एमपीलैड्स को रोककर उनकी भूमिका को सीमित कर दिया है. एमपीलैड्स योजना के तहत लोक सभा और राज्य सभा सांसद सालाना पांच करोड़ रुपये के विकास कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें -  केंद्र सरकार क्यों चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट उसके काम में दखल दे?

ये भी पढ़ेंसंसद में कानून निर्माताओं की भूमिका पर पार्टी कार्यकर्ता इतना हावी क्यों है?

Advertisement. Scroll to continue reading.

एमपीलैड के आवंटन में कमी

एमपीलैड्स योजना के तहत 2011-12 से प्रति सांसद सालाना पांच करोड रुपये का आवंटन होता है. इसके लिए नोडल एजेंसी सांख्यिकी मंत्रालय को बनाया गया है. इसी की वेबसाइट बताती है कि एमपीलैड योजना के लिए बीते कुछ सालों में तय राशि और आवंटित राशि में अंतर लगातार बढ़ा है. (देखें- टेबल एक)

वेबसाइट से सालाना रिपोर्ट गायब

केंद्र सरकार ने एमपीलैड योजना को भले ही इस साल सस्पेंड किया हो, लेकिन सांख्यिकी मंत्रालय ने इसकी वेबसाइट पर वार्षिक रिपोर्ट अपलोड करना बहुत पहले से बंद कर दिया है. इसकी वेबसाइट पर अंग्रेजी में 2016-17 तक और हिंदी में 2014-15 तक की सालाना रिपोर्ट ही मौजूद है. आंकड़ों को छिपाने जैसे आरोपों का सामना कर रही केंद्र सरकार का यह मंत्रालय आखिर सालाना रिपोर्ट क्यों नहीं प्रकाशित कर रहा है, यह अपने आप में बड़ा सवाल है.

हालांकि, इसकी वेबसाइट से पता चलता है कि 17वीं लोक सभा के तहत वित्त वर्ष 2018-19 में सांसद निधि का पूरा पैसा नहीं जारी किया गया. (देखें टेबल-2) मौजूदा वित्त वर्ष में एक भी पैसा जारी नहीं किया गया है. इसके अलावा यह योजना आवंटित फंड को इस्तेमाल न कर पाने की चुनौती से भी जूझ रही है. जैसे 17वीं लोक सभा में आवंटित राशि का सिर्फ 56 फीसदी हिस्सा ही खर्च हो पाया है. (देखें टेबल-3)

क्या एमपीलैड योजना खत्म भी हो सकती है

ये भी पढ़ें -  सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

केंद्र सरकार ने जिस तरह से विपक्षी दलों को भरोसे में लिए बगैर एमपीलैड योजना को दो साल के लिए रोका है, उसने कई आशंकाओं को जन्म दे दिया है. इसमें एक आशंका इस योजना को बंद करने की भी है. इसके पीछे दलील है कि संविधान के मुताबिक सांसद का काम विधायी कार्य यानी कानून बनाना है, न कि कानूनों को लागू करना या विकास कार्य कराना, यह सरकार यानी कार्यपालिका की जिम्मेदारी है.

एमपीलैड्स को लागू करने में होेने वाली हीलाहवाली भी इसकी आलोचना की एक बड़ी वजह रही है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में कई बार कहा है कि इस योजना के तहत आवंटन का बड़ा हिस्सा समय पर खर्च नहीं हो पाता है. इसके साथ-साथ एमपीलैड्स योजना में भ्रष्टाचार और फंड के दुरुपयोग के भी आरोप लगते रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट का एमपीलैड्स पर फैसला

Advertisement. Scroll to continue reading.

हालांकि, इन तमाम आशंकाओं के बीच एक बात गौर करने वाली है कि सुप्रीम कोर्ट एमपीलैड्स योजना को संवैधानिक बता चुकी है. इसकी संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2010 में फैसला सुनाया था. इसमें तत्कालीन चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा था, ‘हम मानते हैं कि एमपीलैड योजना वैध है. इसमें हमारी दखल की कोई जरूरत नहीं है.’ अदालत ने यह भी कहा था कि महज पैसों के दुरुपयोग के आधार पर इस योजना को खारिज नहीं किया जा सकता है, इसकी लोक सभा और राज्य सभा की स्थायी समितियां निगरानी करती हैं और कई स्तरों पर पारदर्शिता तय करने के इंतजाम हैं.

सर्वोच्च अदालत ने यह भी माना था कि एमपीलैड योजना की वजह से स्थानीय स्तर पर पेयजल, बिजली, लाइब्रेरी और खेल-कूद की सुविधाएं जैसे विकास कार्यों में मदद मिली है. अदालत ने कहा था कि यह मानने की कोई वजह नहीं है कि जिला प्रशासन एमपीलैड् योजना को लागू नहीं कर सकता, यह योजना जनता के कल्याण के लिए है. संविधान के अनुच्छेद 282 की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना के लिए बजट आवंटित करने की संसद की शक्ति को पूरी तरह से संवैधानिक बताया था.

ये भी पढ़ें -  संसद के शीतकालीन सत्र को लेकर अटकलें तेज, लोक सभा अध्यक्ष ने केंद्र के पाले में गेंद डाली

सनद रहे

एमपीलैड योजना का ऐलान संसद में 23 दिसंबर 1993 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने किया था. इसके लिए दिया जाने वाला बजट पूरी तरह से केंद्र सरकार का होता है और यह बजट वित्त वर्ष बीतने के साथ खत्म नहीं होता है, बल्कि इसमें बचा हुआ पैसा अगले साल के बजट में जुड़ जाता है. 1993-94 में जब इस योजना को शुरू किया गया था, तब सांसदों को सालाना पांच लाख रुपये मिलते थे. इसे 1994-95 में बढ़ाकर एक करोड़ और 1999-98 में दो करोड़ रुपये सालाना कर दिया गया था.  वित्त वर्ष 2011-12 में इसे पांच करोड़ रुपये सालाना कर दिया गया था. इसके तहत लोक सभा सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में, राज्य सभा सांसद संबंधित प्रदेश में कहीं भी और दोनों सदनों के नामित सांसद देश में कहीं भी सांसद निधि से काम कराने की सिफारिश कर सकते हैं. इससे स्थानीय विकास में सांसदों की भूमिका महत्वपूर्ण बन जाती है.

सांसदों को राष्ट्रीय एकता, सौहार्द और भाई-चारा बढ़ाने के लिए देश में कहीं भी सालाना 25 लाख रुपये का काम कराने की सिफारिश का अधिकार है. वहीं, देश में गंभीर किस्म की प्राकृतिक आपदा होने पर एक करोड़ रूपये और अपने राज्य में प्राकृतिक आपदा के दौरान 25 लाख रुपये तक के काम की सिफारिश कर सकते हैं.

सांसद निधि के तहत पेयजल सुविधा, शिक्षा, बिजली, गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत, स्वास्थ्य, सफाई और परिवार कल्याण, सिंचाई, रेलवे, रोड, खेल-कूद, कृषि और सहायक कार्य, हैंडलूम के लिए कलस्टर डेवलपमेंट और शहरी विकास शामिल है.

ये भी पढ़ेंकैसे लुट गया किसानों को सुरक्षा देने वाली पीएम फसल बीमा योजना का कारवां?

Advertisement. Scroll to continue reading.

पंचायतनामा

पंचायती राज चुनाव: ब्लाक प्रमुख के लिए 8 जुलाई को नामांकन की तारीख घोषित

पंचायती राज विभाग ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि 10 जुलाई को मतदान के बाद जैसे ही मतगणना का काम पूरा होगा, तुरंत नतीजों को सार्वजनिक कर दिया जाएगा. #PanchayatElections2021 #PanchayatElections

ब्लॉक प्रमुख, पंचायती राज, पंचायत चुनाव, उत्तर प्रदेश,
Photo credit- FE

उत्तर प्रदेश के पंचायती राज विभाग ने त्रिस्तरीय पंचायत के तहत ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. इसके अनुसार, उम्मीदवार 8 जुलाई को नामांकन करा सकेंगे. इसी दिन नामांकनों की जांच की जाएगी. उम्मीदवारों को 9 जुलाई को अपना नाम वापस लेने का मौका मिलेगा. 10 जुलाई को सुबह 11 बजे से 3 बजे तक मतदान होगा, इसके बाद मतगणना की जाएगी.

पंचायती राज विभाग ने सभी जिला मजिस्ट्रेट/ निर्वाचन अधिकारियों को ब्लॉक प्रमुख के पद और आरक्षण का ब्यौरा देते हुए 5 जुलाई को सूचना प्रकाशित करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा सभी क्षेत्र पंचायत सदस्यों को उनके अंतिम ज्ञात पते पर सूचना भेजी जाएगी और निर्वाचन कार्यक्रम को समाचार पत्रों में भी प्रकाशित कराया जाएगा.

गौरतलब है नामांकन से लेकर मतगणना की पूरी प्रक्रिया क्षेत्र पंचायत मुख्यालय पर संपन्न होगी. मदतान करने के लिए सभी उम्मीदवारों को देवनागरी में मतपत्र दिए जाएंगे. इस दौरान अवकाश होने पर भी सभी कार्यालय खुले रहेंगे.

पंचायती राज विभाग ने अपनी अधिसूचना में कहा है कि 10 जुलाई को मतदान के बाद जैसे ही मतगणना का काम पूरा होगा, तुरंत नतीजों को सार्वजनिक कर दिया जाएगा. गौरतलब है कि ब्लॉक प्रमुख का चुनाव होने के साथ उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का गठन पूरा हो जाएगा.

ये भी पढ़ें -  केंद्र सरकार नहीं बुलाएगी संसद का शीतकालीन सत्र, फिर चर्चा में आई 'टू मच डेमोक्रेसी'

पंचायतनामा

जानिए, ग्राम सभा की पहली बैठक में क्या-क्या काम किए जाएंगे?

अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज, मनोज कुमार सिंह की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, सभी जिलाधिकारियों को ग्राम सभा की पहली बैठक के बारे में पूरे ब्यौरे के साथ 28 मई तक शासन को रिपोर्ट भेजनी है.

पंचायत ग्राम सभा ग्राम प्रधान
प्रतीकात्मक तस्वीर (फाइल)

कोरोना महामारी के बीच उत्तर प्रदेश में ग्राम सभा की पहली बैठक के लिए 27 मई का समय तय किया गया है. इसी दिन से ग्राम सभा के कार्यकाल की शुरुआत मानी जाएगी. पहली बैठक की जगह पंचायत भवन और सामुदायिक भवन होगा.

उत्तर प्रदेश पंचायती राज नियमावली के नियम-31 और 32 के अनुसार, पहली बैठक के लिए स्थान की जानकारी देते हुए सभी ग्राम पंचायत सदस्यों को लिखित रूप में सूचना दी जाएगी. इसके अलावा नोटिस की एक प्रति पंचायत भवन जैसे सार्वजनिक स्थान पर भी चिपकाई जाएगी.

वहीं, न्याय पंचायत स्तर पर नामित सेक्टर प्रभारी ग्राम सभा की पहली बैठक में अनिवार्य रूप से मौजूद रहेंगे और बैठक संपन्न कराएंगे. इस बैठक में कोविड-19 के कारण पैदा हालात और इससे निपटने के उपायों पर चर्चा की जाएगी.

इस बारे में आने वाले सुझावों को एकत्रित करके सहायक विकास अधिकारी, पंचायत पंचायती राज निदेशालय के माध्यम से शासन को भेजा जायेगा. इस बैठक में कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन सुनिश्चित किया जाएगा.

इसके अलावा पहली बैठक के एजेंडा में ग्राम पंचायतों की छह समितियों के गठन का प्रस्ताव किया जाएगा. इसी पहली बैठक में समितियों को गठित कराने लेने की कोशिश की जाएगी.

अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज, मनोज कुमार सिंह की ओर से जारी आदेश के मुताबिक, सभी जिलाधिकारियों को ग्राम सभा की पहली बैठक के बारे में पूरे ब्यौरे के साथ 28 मई तक शासन को रिपोर्ट भेजनी है.

त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के बाद 25 और 26 मई को ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों की शपथ ग्रहण कराया जा रहा है. इसमें लगभग 58 हजार से ज्यादा ग्राम प्रधान शामिल हो रहे हैं.

ये भी पढ़ें -  सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

हालांकि, 136 ग्राम पंचायतों के प्रधानों को शपथ लेने के लिए छह महीने का इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि उनके यहां दो तिहाई सदस्यों का निर्वाचन नहीं हो पाया है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

शपथ ग्रहण के लिए ग्राम प्रधान और दो-तिहाई सदस्यों का निर्वाचित होना जरूरी है. इन ग्राम पंचायतों में ग्राम सभा गठित होने तक प्रशासन काम संभालेंगे.

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 28 मई को सभी ग्राम प्रधानों से वर्चुअल बैठक करने का फैसला किया है.

पंचायतनामा

क्यों ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य पहले की तरह इस बार शपथ नहीं ले पाएंगे?

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच होने जा रहे शपथ ग्रहण के लिए इस बात तरीके में बदलाव किया गया है. इस दौरान सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करना होगा.

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के संपन्न होने के बाद अब ग्राम पंचायतों के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। शनिवार को पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने इससे जुड़ा शासनादेश जारी किया। इस आदेश के मताबिक, 25 से 26 मई के बीच ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों को शपथ दिलाई जाएगी। वहीं, ग्राम सभा की पहली पहली बैठक के लिए 27 मई को होगी. इस पूरी कार्यवाही के लिए अधिसूचना 24 मई को जारी की जाएगी. इस अधिसूचना को हिंदी और अंग्रेजी में सभी जरूरी स्थानों पर लगाने के अलावा अखबारों में प्रकाशित कराया जाएगा.

पंचायती राज अधिनियम के मुताबिक, ग्राम पंचायत के गठन के लिए प्रधान और दो-तिहाई सदस्यों का निर्वाचित होना अनिवार्य है। इसी उल्लेख करते हुए शासनादेश में कहा गया है कि जहां भी प्रधान और दो-तिहाई सदस्य निर्वाचित हो गए हैं, वहां पर ग्राम सभा के गठन के लिए 24 मई तक अधिसूचना जारी हो जानी चाहिए। इसके बाद सक्षम अधिकारियों के सामने ग्राम पंचायत के सभी निर्वाचित प्रतिनिधि शपथ लेंगे। शासनादेश में इसके लिए 25 और 26 मई का समय तय किया गया है।

कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को देखते हुए इस बार शपथग्रहण के तौर-तरीके में बदलाव किया गया है। शासनादेश के मुताबिक, इस बार ग्राम प्रधानों और सदस्यों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या वर्चुअल माध्यम से शपथ दिलाई जाएगी। शासनादेश के मुताबिक, शपथ ग्रहण के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा। इसके लिए पंचायत घर, सामुदायिक भवन, ग्राम पंचायत क्षेत्र में बने कॉमन सर्विस सेंटर जरूरी इंतजाम किए जाएंगे। इसकी जिम्मेदारी ग्राम सचिव को सौंपी गई है। उन्हें लैपटॉप और इंटरनेट का इंताजाम करना होगा.

ये भी पढ़ें -  क्यों यह सोचना गलत है कि कोरोना की दूसरी लहर अचानक आई या केंद्र सरकार को पता नहीं था

शपथ ग्रहण के बाद सभी निर्वाचित प्रतिनिधि अपने शपथ पत्रों पर हस्ताक्षर करेंगे। ग्राम प्रधान जहां अपने शपथ पत्रों को पंचायती राज अधिकारी को, वहीं, ग्राम पंचायत सदस्य खंड विकास अधिकारी को सौंप देंगे, जो उन्हें सुरक्षित रखेंगे। अगर कोई सदस्य शपथ ग्रहण से इनकार करता है तो मान लिया जाएगा कि उसने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। नवगठित ग्राम पंचायतों की पहली बैठक के लिए 27 मई का समय तय किया गया है।

पंचायतनामा

UP Panchayat Chunav 2021 : नामांकन पत्र के साथ कौन-कौन से दस्तावेज लगाने जरूरी है?

उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नामांकन पत्र के साथ कौन-कौन से दस्तावेज देने जरूरी हैं. पढ़िए ये खबर…

पंचायत चुनाव, नामांकन पत्र, उत्तर प्रदेश
Photo credit- Pixabay

उत्तर प्रदेश में तमाम कानूनी अड़चनों व बाधाओं के बाद पहले चरण के तहत 18 जिलों में पंचायत चुनाव-2021 (UP Panchayat chunav 2021) के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है. उम्मीदवार ग्राम पंचायत सदस्य, ग्राम पंचायत प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के लिए नामांकन पत्र भर रहे हैं. उम्मीदवारों के लिए अपने नामांकन पत्र के साथ ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत से लिया गया नो-ड्यूज सर्टिफिकेट, जाति प्रमाण-पत्र (आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार होने पर), जमानत धनराशि जमा करने का चालान या 385-शासकीय रसीद की मूल प्रति, निर्वाचक नामावली (वोटर लिस्ट) की स्वप्रमाणित प्रति (उम्मीदवार और प्रस्तावक दोनों की), संगलग्न-1 (क) यानी आपराधिक/शैक्षिक/चल-अचल सम्पत्ति का घोषणा पत्र और उम्मीदवार का पासपोर्ट साइज फोटो जमा करना अनिवार्य है.

बैंक खाते का ब्यौरा देना जरूरी

ग्राम पंचायत सदस्यों को अपने नामांकन पत्र के साथ प्रारूप ‘अ’, जबकि ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के उम्मीदवारों के लिए प्रारूप ‘ब’ के अनुरूप घोषणा पत्र भी देना होगा. इसके अलावा ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवारों को अपने चुनाव प्रचार खर्च के लिए खोले गये बैंक खाते का ब्यौरा भी नामांकन पत्र के साथ देना होगा. चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों के खर्च पर निगरानी रखने के लिए समितियों का गठन किया है. यह समितियां चुनाव खत्म होने के बाद उम्मीदवारों के खर्च की जांच करेंगी. जिन उम्मीदवारों का खर्च तय सीमा से ऊपर पाया जाएगा, उनकी जुर्माने के तौर पर जमानत राशि को जब्त कर लिया जाएगा.

व्यक्तिगत आरोपों की छूट नहीं 

ये भी पढ़ें -  सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा कि बिहार में कानून का नहीं, बल्कि पुलिस का राज चल रहा है?

त्रिस्तरीय पंचायत सामान्य निर्वाचन-2021 को स्वतन्त्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश ने सामान्य आचार संहिता के निर्देश जारी किये हैं. इसके तहत सभी उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों पर चुनाव के दौरान ऐसी कोई बात किसी भी रूप में नहीं कहेंगे या लिखेंगे, जिससे किसी धर्म, संप्रदाय, जाति या सामाजिक वर्ग व उम्मीदवार/राजनीतिक दल या कार्यकर्ताओं की भावना चोटिल होती हो या कोई तनाव पैदा होता हो. हालांकि, किसी उम्मीदवार की उनकी नीतियों, कार्यक्रमों, पहले के इतिहास और सार्वजनिक कार्यों के आधार पर आलोचना की जा सकती है. लेकिन इसमें किसी उम्मीदवार के व्यक्तिगत जीवन से सम्बन्धित पक्ष शामिल नहीं होगा.

धार्मिक स्थलों के इस्तेमाल पर रोक

लोगों का वोट पाने के लिए किसी भी तरह से जातीय, साम्प्रदायिक और धार्मिक भावनाओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहारा नहीं लिया जाएगा. इसी तरह पूजा स्थलों जैसे मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरूद्वारा इत्याति का चुनाव के दौरान प्रचार या अन्य चुनावी कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

लालच, डर, धमकी आचार संहिता के खिलाफ

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसके साथ किसी की चुनावी सभा में गड़बड़ी करना या करवाना, मतदाताओं को रिश्वत देकर या डरा धमकाकर या आतंकित करके अपने पक्ष में मत देने के लिए प्रभावित करना या चुनाव की प्रकिया के दौरान किसी भी के नशीले पदार्थ को बांटने पर भी रोक लगाई गई है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव-2021 के लिए उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आचार संहिता सभी पर बाध्यकारी है. इसमें चुनाव के दौरान किसी अन्य उम्मीदवार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन, पुतला दहन करने जैसे कार्यों पर भी रोक लगाई गई है.

ये भी पढ़ें -  सरकार जी, मनगढंत झूठ का सच भी झूठ ही होता है और इसका विज्ञापन दुष्प्रचार

निजी क्षेत्र के इस्तेमाल पर अनुमति लेनी जरूरी

इतना ही नहीं, चुनाव प्रचार के दौरान कोई भी उम्मीदवार, चुनाव कार्यकर्ता/एजेन्ट को झंडा लगाने, झंडिया टांगने, बैनर लगाने के लिए किसी व्यक्ति की भूमि, भवन, अहाते, दीवार का उपयोग करने से पहले उसकी अनुमति लेनी होगी. इसके अलावा किसी भी शासकीय/सार्वजनिक स्थल, भवन, परिसर पर विज्ञापन, वाल राइटिंग, कटआउट, होर्डिंग, बैनर लगाने या उसे गंदा करने पर पूर्ण पाबंदी है.

शर्तों के साथ लाउडस्पीकर का इस्तेमाल

चुनाव प्रचार में गाड़ियों का इस्तेमाल करने के लिए सभी उम्मीदवारों को जिला प्रशासन से अनुमति लेनी होगी. इसके अलावा रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर या साउंड बॉक्स का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित है. इसके अलावा टीवी चैनल, केबिल नेटवर्क/वीडियो वाहन या रेडियो से प्रचार या विज्ञापन करने से पहले जिला प्रशासन की अनुमति लेनी होगी.

मुद्रक प्रकाशक का नाम होना जरूरी

आचार संहिता के तहत कोई भी मुद्रक या प्रकाशक या कोई अन्य व्यक्ति कोई भी ऐसी प्रचार सामग्री ऐसी किसी पत्र-पत्रिका में प्रकाशित नहीं करेगा, जिसके मुख्य पृष्ठ पर उसके मुद्रक व प्रकाशक का नाम और पता न हो. इसमें फोटोग्राफी भी शामिल होगी. इसके अलावा बिना उम्मीदवार की अनुमति के कोई व्यक्ति उसके पक्ष में विज्ञापन या प्रचार सामग्री प्रकाशित नहीं करेगा.

कोरोना संक्रमित करा सकते हैं नामांकन

इसके अलावा कोरोना संकट को देखते हुए नामांकन प्रक्रिया के दौरान सभी एहतियाती उपायों को मानना भी अनिवार्य बनाया गया है. इसमें मास्क लगाने, हाथ धोने व सैनेटाइज करना शामिल है. प्रशासन ने कोविड संक्रमित व्यक्ति को भी नामांकन कराने की छूट दी है. वह प्रस्तावक या किसी अन्य व्यक्ति को इसके लिए अधिकृत करते हुए अपना नामांकन प्रस्तुत कर सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
ये भी पढ़ें -  किसानों के आंदोलन के बावजूद सरकार संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने से क्यों बच रही है?

चरण 1

पहले चरण में जिन 18 जिलों में नामांकन प्रक्रिया (nomination process) शुरू हुई है, उनमें गाजियाबाद (Ghaziabad), सहारनपुर (Saharanpur), रामपुर (Rampur), बरेली (Bareilly), हाथरस (Hathras), आगरा (Agra), कानपुर सिटी (Kanpur City), झांसी (Jhansi), महोबा (Mahoba), प्रयागराज (Prayagraj), रायबरेली (Raebareli), हरदोई (Hardoi), अयोध्या (Ayodhya), श्रावस्ती (Shravasti) , संत कबीर नगर (Sant Kabir Nagar), गोरखपुर (Gorakhpur), जौनपुर (Jaunpur) और भदोही (Bhadohi) जिले शामिल हैं.