साल 1992 में बना डॉ. आंबेडकर फाउंडेशन बाबा साहब डॉ. बी. आर. अंबेडकर के विचारों और संदेशों को फैलाने व वंचित तबके के लोगों की मदद करने करने के लिए कई योजनाएं चलाता है. सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के तहत काम करने वाला यह संगठन हर साल हजारों लोगों की मदद करता है. इनमें शादी से लेकर शिक्षा और इलाज के लिए मदद देने की योजनाएं शामिल हैं.
संसद के बजट सत्र में लोकसभा सांसद गौतम सिंगा मणि पोन, सीएन अन्नादुरई, गजानन कीर्तिकर, धनुष एम कुमार और अरविंद सावंत ने डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन से जुड़ा सवाल उठाया. उन्होंने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से पूछा कि डॉ आंबेडकर फाउंडेशन की ओर से बीते तीन वर्षों के दौरान एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए किए गए कार्यों का ब्यौरा क्या है? यह भी पूछा कि उपरोक्त योजनाएं लक्षित समूहों तक पहुंचें, इसलिए उन्हें लोकप्रिय बनाने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं? सांसदों ने यह भी पूछा कि योजनाओं को लागू करते समय डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और सरकार ने योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं?
लोकसभा में सांसदों के उठाए गए सवालों का जवाब सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने दिया. उन्होंने बताया कि डॉ आंबेडकर फाउंडेशन सिर्फ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) की मदद करने की योजनाएं चलाता है. उन्होंने बताया कि डॉ आंबेडकर फाउंडेशन ओबीसी वर्ग के लिए कोई योजना नहीं चलाता है.
डॉ आंबेडकर फाउंडेशन की तरफ से चलने वाली योजनाओं में डॉ. अंबेडकर चिकित्सा सहायता स्कीम, अंतरजातीय विवाह के जरिए सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए डॉ. अंबेडकर स्कीम, अत्याचार से पीड़ित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों की मदद करने के लिए डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय राहत, अनुसूचित जाति और जनजाति के मेधावी छात्रों के लिए डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय मेरिट अवार्ड स्कीम का संचालन करता है. मेधावी छात्रों की सहायता की योजना सेकेंडरी स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल दोनों के लिए मिलती है
लोकसभा में पेश आंकड़ों को देखें तो डॉ. अंबेडकर चिकित्सा सहायता स्कीम के तहत 2017-18 में लाभार्थियों की संख्या 197 थी, जो 2018-19 में 290 और 2019-20 में बढ़कर 371 पहुंच गई. इसी तरह अंतरजातीय विवाह के लिए आर्थिक सहायता पाने वाले लाभार्थियों की संख्या भी लगातार बढ़ी है. हालांकि, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अत्याचार पीड़ितों को मिलने वाली सहायता लगातार घटी है. यह 2019-20 में शून्य हो गई, जो चौंकाने वाली बात है, क्योंकि 2017-19 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का आंकड़ा बताता है कि अनुसूचित जाति के उत्पीड़न के मामले 15 फीसदी बढ़ गए हैं.
इसी तरह एससी-एसटी वर्ग से जुड़े मेधावी छात्रों को स्कूल परीक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन के आधार पर लाभ पाने वाले लाभार्थियों की संख्या गिरी है. साल 2017-18 में जहां 386 छात्रों को 115 करोड़ रुपये मिले, वही 2018-19 में यह संख्या घटकर 355 हो गई, जो 2019 में 279 तक पहुंच गई. इसके तहत दी जाने वाली सहायता राशि 85 करोड़ रुपये हो गई.
लोक सभा में डॉ आंबेडकर फाउंडेशन से जुड़े सवाल सांसद अजय भट्ट ने भी पूछे थे. उन्होंने घातक बीमारियों के लिए बीते 3 साल में लोगों को दी गई सहायता का ब्यौरा मांगा था. उन्होंने यह भी पूछा था कि क्या सरकार ने इसकी निगरानी के लिए कोई नियामकीय संस्था बनाई है. इन सवालों का जवाब सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रतनलाल कटारिया ने ही दिया. उन्होंने बताया कि डॉ आंबेडकर फाउंडेशन अभी कुल 13 योजनाएं चलाता है, जो सभी राज्यों के लिए होती हैं, न कि किसी एक राज्य विशेष के लिए.
डॉ आंबेडकर फाउंडेशन से चिकित्सा सहायता लेने वाले लाभार्थियों में लगभग सभी राज्यों से लोग शामिल हैं. हालांकि, संसद में दिए गए आंकड़ों से साफ पता चलता है कि मणिपुर और पंजाब के लाभार्थी इसमें सबसे ज्यादा हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर है. लेकिन साल 2020-21 में मणिपुर के लाभार्थियों की संख्या नाटकीय ढंग से घट गई है. वहीं, उत्तर प्रदेश से लाभार्थियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है. पंजाब अभी भी लाभार्थियों में दूसरे स्थान पर है.