केंद्र सरकार ने संसद में लड़कियों के स्कूल छोड़ने का जो आंकड़ा पेश किया है, वह कई राज्यों में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट बढ़ने की जानकारी दे रहा है. कर्नाटक के शिवगंगा से लोक सभा में सांसद कार्ती चिदंबरम ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से सवाल पूछा –
(1) क्या मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी पर ध्यान दिया है?
(2) यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है और सरकार की ओर से इस संबंध में क्या उपाए किए गए है?
(3) क्या मंत्रालय ने महामारी के दौरान बाल विवाह की बढती संख्या पर ध्यान दिया है?
(4) यदि हां तो उसका ब्यौरा क्या है और इस संबंध में क्या उपाय किए गए हैं?
(5) क्या मंत्रालय के पास चालू वर्ष के दौरान स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या का कोई आंकड़ा है और यदि हां, तो पिछले पांच वर्षों के दौरान उसका राज्य-वार ब्यौरा क्या है?
(6) और इसे रोकने के लिए मंत्रालय की ओर से क्या उपाय किए जा रहे हैं?
पुलिस व कानून-व्यवस्था राज्यों की जिम्मेदारी
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जूबिन ईरानी ने लोक सभा सांसद कार्ती चिदंबरम के सवालों का लिखित जवाब दिया. उन्होंने बताया कि घरेलू हिंसा के बारे में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) आंकड़े जुटाता है और अपनी रिपोर्ट में ‘भारत में अपराध’ के तहत संकलित व प्रकाशित करता है, जो एनसीआरबी की वेबसाइट (https.//ncrb.gov.in) पर उपलब्ध है.
केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया है कि भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत पुलिस और कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय है, इसलिए कानून-व्यवस्था बनाना और महिलाओं समेत नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है.
विभिन्न योजनाओं का ब्योरा देते हुए उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान हिंसा रोकने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग की तरफ से अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के प्रयास किए गए हैं.
बाल विवाह को रोकने के प्रयास जारी
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जूबिन ईरानी ने बताया कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने साल 2020 के दौरान बाल विवाह की 111 शिकायतें दर्ज होने की सूचना दी है. उनके जवाब के मुताबिक, सरकार बाल विवाह को रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम-2006 लागू कर रही है.
इसके अलावा महिला और बाल विकास मंत्रालय बेटी बचाओ-बेटी पढाओ (बीबीबीपी) योजना को भी लागू कर रहा है, जिसमें लैंगिक समानता के लिए जागरूकता पैदा करने और बाल विवाह को हतोत्साहित करने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है.
स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों का राज्यवार आंकड़ा
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जूबिन ईरानी ने लड़कियों के ड्रॉपआउट का राज्यवार आंकड़ा भी दिया है. यह आंकड़ा बताता है कि साल 2017-18 के मुकाबले 2018-19 में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर कई में बढ़ गई है.
अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों में प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों स्तरों पर लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट (स्कूल छोड़ने की दर) बहुत ज्यादा बढ़ी है. कई राज्य ऐसे भी हैं, जिनमें प्राइमरी या सेकेंडरी स्तर पर ड्रॉपआउट रेट घटा और बढ़ा दोनों है. इनमें दिल्ली, केरल, छत्तीसगढ़, पंजाब और असम में दोनों स्तरों पर ड्रॉपआउट रेट घटा है.
हालांकि, बिहार, असम और अरुणाचल प्रदेश में लड़कियों का ड्रॉपआउट रेट 30 फीसदी के आसपास बना हुआ है. लड़कियों के ड्रॉपआउट रेट का राष्ट्रीय औसत 2018-19 में प्राइमरी स्तर पर 4.74 फीसदी और सेकेंडरी स्तर पर 17.3 फीसदी रहा है. (देखें टेबल)ड्रॉपआउट रोकने के लिए क्या कर रही है सरकार
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति जुबेन ईरानी ने बताया कि उनका मंत्रालय 11-14 साल की स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों के आत्मविकास, सशक्तीकरण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण, किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता लाने के लिए विशेष कार्यक्रम (एसएजी) को लागू कर रहा है. इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ऐसी लड़कियों की पहचान करने और उन्हें योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.