कन्या भ्रूण हत्या (Female Feticide) को लड़कों के मुकाबले लड़कियों की घटती संख्या की मुख्य वजह माना जाता है. यही वजह है कि जन्म से पूर्व लिंग की जांच पर न केवल प्रतिबंध है, बल्कि इसके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान भी किया गया है. लेकिन क्या इससे देश में कन्या भ्रूण हत्या बंद हो गई है? इसका स्पष्ट जवाब है – नहीं. हालांकि, सरकार ने संसद में कन्या भ्रूण हत्या का जो आंकड़ा पेश किया है, वह हैरान करने वाला है. कन्या भ्रूण हत्या क्या है? जब किसी भ्रूण को केवल लड़की होने की वजह से नष्ट किया जाता है तो कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide) कहलाता है.
सांसद ने क्या सवाल पूछा
संसद के बजट सत्र में लोक सभा सांसद वीरेंद्र कुमार ने केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से इन चार सवालों पर जवाब मांगा-
(1) बीते वर्षों के दौरान कन्या भ्रूण हत्या का राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के आधार पर ब्यौरा क्या है?
(2) क्या सरकार देश में कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए कोई नीति तैयार कर रही है और यदि हां, तो उसका ब्यौरा क्या है?
(3) क्या सरकार का भ्रूण हत्या रोकने के लिए देश के प्रत्येक जिले में केंद्र स्थापित करने का विचार है?
(4) अगर हां, तो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन केंद्रों को कब-कब खोलने और शुरू करने की की योजना है?
मंत्री ने क्या जवाब दिया
लोक सभा में सांसद डॉ. वीरेंद्र कुमार के तारांकित प्रश्न का जवाब केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने दिया. उन्होंने कहा कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या के 2017 में 37, 2018 में 31 और 2019 में 36 मामले दर्ज किए गए.
केंद्रीय मंत्री के जवाब के मुताबिक, 2019 में महाराष्ट्र में कन्या भ्रूण हत्या के सबसे ज्यादा छह मामले और मध्य प्रदेश में पांच मामले दर्ज किए गए. वहीं, चार मामलों के साथ राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तीसरे नंबर पर रहे, जबकि हरियाणा में तीन, गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में दो-दो मामले दर्ज किए गए.
बिहार में कन्या भ्रूण हत्या के मामले जीरो
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के जवाब के मुताबिक, 2019 में अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, ओडिशा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में कन्या भ्रूण हत्या के दर्ज मामलों की संख्या शून्य रही.
इतना ही नहीं, 2019 में छत्तीसगढ़, मिजोरम, तमिलनाडु और पंजाब में सिर्फ एक-एक मामले दर्ज किए गए. अगर कम मामले दर्ज होने का मतलब कम अपराध होना है तो कन्या भ्रूण हत्या के मामले में यह बात दूसरे आंकड़ों के आधार पर कहीं से भी सही नहीं लग रही है.
भ्रूण हत्या कम तो लिंगानुपात में इतना अंतर क्यों
सवाल है कि अगर कन्या भ्रूण हत्या के मामले इतने कम हैं तो इन राज्यों में लड़के-लड़कियों के लिंगानुपात में इतना अंतर क्यों है? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जैविक तौर पर जन्म के वक्त लिंगानुपात (Sex Ratio At Birth) प्रति 1050 लड़कों पर 1000 लड़कियां होता है.
हालांकि, दिसंबर 2020 में आया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (National Family Health Survey)(NFHS-5) का पहला हिस्सा बताता है कि बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, मेघालय, नगालैंड और दादर-नगर हवेली में जन्म के समय लिंगानुपात 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुकाबले घट गया है. इसके पीछे जन्म से पहले लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या होने को वजह माना जा रहा है.
कन्या भ्रूण हत्या के पीछे की सोच
लड़कों के मुकाबले कम लड़कियों के जन्म के पीछे रुढ़िवादी मानसिकता है. यही सोच लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के लिए तैयार करती है. इसकी जानकारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (NFHS-4) से मिलती है.
इसके मुताबिक, बिहार में 37.1 फीसदी महिलाएं और 30.4 फीसदी पुरुष चाहते हैं कि उनके परिवार में लड़कियों के मुकाबले लड़कों की संख्या ज्यादा हो. वहीं, सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 31.3 फीसदी महिलाएं और 27.9 फीसदी पुरुष ऐसा चाहते हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि खुद महिलाओं में लड़कों की चाहत पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है.
पूर्वोत्तर शेष भारत से अलग नहीं, अजब है
हालांकि, लड़कों की चाहत की बात पूर्वोत्तर में थोड़ा बदलकर सामने आती है. यहां महिलाएं नहीं, बल्कि पुरुषों में लड़कों की चाहत ज्यादा देखी गई है. एनएफएचएस-1 के मुताबिक, मिजोरम में 28.2 फीसदी महिलाओं के मुकाबले 39 फीसदी पुरुषों ने कहा कि उनके परिवार में लड़कों की संख्या लड़कियों से ज्यादा होनी चाहिए.
इसी तरह मणिपुर में 24.6 फीसदी महिलाएं और 36.6 फीसदी पुरुष चाहते हैं कि उनके घर में लड़के ज्यादा हों, लड़कियां नहीं. नगालैंड में भी लड़कियों के मुकाबले ज्यादा लड़के चाहने वालों में महिलाएं 20.1 फीसदी और पुरुष 31.3 फीसदी पाए गए.
हालांकि, देश में मेघालय एक ऐसा राज्य है, जहां लड़कियों की चाहत रखने वाली महिलाओं (21.1 फीसदी) की संख्या लड़कों की चाह रखने वाली महिलाओं (14.1 फीसदी) से ज्यादा है. लेकिन इन सभी राज्यों में लड़कों की चाहत का प्रतिशत कम नहीं है.
परिवार में लड़कों के जन्म की चाहत के बीच इन राज्यों में कन्या भ्रूण हत्या के बेहद सीमित मामले दर्ज होना चौंकाने वाला है. यह बताता है कि सरकारें प्री-कन्सेप्शन एंड पी-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (प्रोहिबिशन ऑफ सेक्स सेलेक्शन) एक्ट-1994 (पीएनडीटी एक्ट) को प्रभावी तरीके से लागू करने में नाकाम हो रही हैं.
हरियाणा का यूपी पर लापरवाही बरतने का आरोप
प्रसव पूर्व लिंग जांच रोकने में लापरवाही का सबूत हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की ओर से उत्तर प्रदेश के सीएम आदित्यनाथ को हाल ही में लिखी गई चिट्ठी है. हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि हरियाणा की टीमों की छापेमारी के बावजूद उत्तर प्रदेश सरकार इस गैर-कानूनी काम को रोकने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर रही है.
22 जनवरी, 2015 में हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत के बाद से, हरियाणा सरकार ने उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में सफल छापेमारी की और लिंग जांच करने वाले रैकेट में शामिल दलालों समेत यूपी के लगभग 100 से ज्यादा निवासियों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं. ये गिरोह हरियाणा की गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व लिंग जांच के लिए निशाना बनाते थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में महामारी के बावजूद, हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग ने 100 एफआईआर दर्ज की, जिनमें लगभग 40 मामले इंटर-स्टेट हैं. इनमें 22 मामले उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों, जबकि 11 मामले अकेले गाजियाबाद से जुड़े हैं. इसलिए गाजियाबाद को प्रसव पूर्व लिंग जांच का हब कहा जाने लगा है.
कोरोना काल में भ्रूण हत्या बढ़ने का खतरा
कोरोना महामारी के दौरान प्रसव पूर्व लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़ने का खतरा देखा जा रहा है. दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने पीएनटीडी एक्ट की कुछ प्रमुख धाराओं को स्थगित कर दिया था.
इसमें जेनेटिक और अल्ट्रासाउंट क्लीनिक के दोबारा रजिस्ट्रेशन, तिमाही रिपोर्ट जमा करने और गर्भावस्था के दौरान की जांच प्रक्रियाओं की विस्तृत रिपोर्ट को जमा करने से छूट देने जैसे कदम शामिल हैं.
माना जा रहा है कि यह लिंग की जांच करने वाले गिरोहों के लिए सुनहरा अवसर साबित हुआ है. इस आशंका को हरियाणा सरकार की ओर से प्रसव पूर्व लिंग जांच रोकने के लिए यूूपी, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड में की गई सफल छापेमारी आधार दे रही है.