भारत में 27 साल पहले मैन्युअल स्कैवेजिंग यानी हाथ से मैला उठाने पर पाबंदी लगाई गई. इसके लिए इंप्लायमेंट ऑफ मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन (प्रोहिबिशन) एक्ट-1993 (Employment of Manual Scavengers and Construction of Dry Latrines (Prohibition) Act-1993) लागू किया गया. फिर भी हर साल सेप्टिक टैंक से लेकर सीवर की सफाई करते हुए दर्जनों सफाईकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है. यह हालात तब हैं, जब सरकारें मैन्युअल स्कैवेंजिंग रोकने और इससे जुड़े लोगों के पुनर्वास के दावे कर रही हैं. कुछ राज्य सरकारें तो अपने यहां मैन्युअल स्कैवेंजर्स की संख्या शून्य तक बता रही हैं.
संसद में पूछा गया सवाल
संसद के मानसून सत्र में राज्य सभा में सांसद एम शनमुगम ने मैन्युअल स्कैवेंजर्स का मुद्दा उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा-
(1) क्या सरकार ने हाथ से मैला उठाने के आंकड़े जुटाने के लिए कोई राष्ट्रीय सर्वेक्षण शुरू किया है?
(2) अगर हां तो राज्यवार ब्यौरा क्या है?
(3) बीते तीन साल में कितने लोगों की मौत हाथ से मैला उठाने के दौरान दम घुटने से हुई है?
(4) नालों की साफ-सफाई के दौरान कर्मचारियों को मास्क व अन्य सुरक्षा उपकरण देने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
(5) क्या सरकार ने हाथ से मैला उठाने को खत्म करने के लिए सख्त नियम बनाने और ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए कोई योजना बनाई है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है? [अतारांकित प्रश्न. 1264 | 21 सितंबर 2020]
बिहार में जीरो तो यूपी में सबसे ज्यादा मैन्युअल स्कैवेंजर्स
सांसद के इन सवालों का जवाब सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने दिया. उन्होंने बताया कि साल 2018-19 के दौरान 18 राज्यों के 194 जिलों में मैन्युअल स्कैवेंजर्स की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय सर्वे कराया गया था. इसमें वे मैनुअल स्कैवेंजर्स भी शामिल थे, जो स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ शौचालय बनने के बाद मैन्युअल स्कैवेंजिंग से अलग हो गए थे और उनकी अब तक पहचान नहीं की गई थी.
इसका राज्यवार ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया कि बिहार, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना में 15 सितंबर 2020 तक मैन्युअल स्कैवेंजर्स की संख्या शून्य है. वहीं, उत्तर प्रदेश में 24 हजार 932 मैन्युअल स्कैवेंजर्स हैं, जो किसी एक राज्य में सबसे बड़ी संख्या है. इसके बाद 7,378 मैन्युअल स्कैवेंजर्स के साथ महाराष्ट्र का स्थान है. गौरतलब है कि मैन्युअल स्कैवेंजिंग में लगे 95 फीसदी लोग अनुसूचित जाति से जुड़े हैं.
सरकार के जवाब से उठे सवाल
वहीं, तीसरे सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा, ‘मैन्युअल स्कैवेंजिंग के कारण देश में किसी व्यक्ति की मौत होने के बारे में कोई रिपोर्ट नहीं मिली है. लेकिन राज्यों से मिली रिपोर्ट के अनुसार, बीते तीन वर्षों के दौरान, 31 अगस्त 2020 तक सीवर या सेप्टिक टैंकों की सफाई करते हुए 288 लोगों की मौत हुई है.’
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री के दूसरे और तीसरे सवालों के जवाब ने कई और सवाल खड़े कर दिए हैं. जैसे क्या वाकई बिहार, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और तेलंगाना में एक भी मैन्युअल स्कैवेंजर्स नहीं हैं? कहीं सरकार मैन्युअल स्कैवेंजिंग की परिभाषा को तो सीमित नहीं कर रही हैं, क्योंकि उसने अपने जवाब में मैन्युअल स्कैवेंजिंग और बिना सुरक्षा उपकरण या मशीन से सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले व्यक्तियों के बीच में अंतर किया है.
मैन्युअल स्कैवेंजर्स किसे माना जाता है
इन आंकड़ों की हकीकत से पहले मैन्युअल स्कैवेंजिंग की आधिकारिक परिभाषा जान लेना जरूरी है. मैन्युअल स्कैवेंजिंग पर रोक लगाने वाले इंप्लायमेंट ऑफ मैन्युअल स्कैवेंजर्स एंड कंस्ट्रक्शन ऑफ ड्राई लैट्रिन (प्रोहिबिशन) एक्ट-1993 के मुताबिक, ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को मैन्युअल स्कैवेंजर माना जाएगा जो अस्वस्छ शौचालयों की सफाई करते हुए हाथ से मानव मल को हटाता है या किसी भी तरीके से मानव मल के निस्तारण, चाहे खुले नाले या गड्ढा में हो या रेलवे ट्रैक पर हो, के काम से जुड़ा है.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने तीसरे सवाल के जवाब में खुद इस बात का उल्लेख किया है कि सरकार ने “हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के रूप में नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास नियमावली, 2013 (एमएस नियमावली, 2013)” अधिसूचित की है. इसके तहत सफाईकर्मियों को सुरक्षा उपकरण देने और नियोक्ता द्वारा सीवर या सेप्टिक टैंक साफ करने में लगे कर्मचारियों का 10 लाख रुपए का जीवन बीमा कराने और उसका प्रीमियम जमा करना अनिवार्य बनाया गया है.
अब सवाल उठता है कि अगर मैन्युअल स्कैवेंजिंग और सेप्टिक टैंक की सफाई दो अलग-अलग बातें हैं तो सरकार ने मैन्युअल स्कैवेंजिंग रोकने की नियमावली में दोनों को क्यों शामिल किया है?
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी 27 मार्च 2014 को सफाई कर्मचारी आंदोलन बनाम भारत संघ मामले में मैन्युअल स्कैवेंजिंग में सेप्टिक टैंक की सफाई को शामिल रखा है. अपने आदेश में अदालत ने कहा कि अगर मैन्युअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह से रोकना है और आने वाली पीढ़ी को इस अमानवीय काम में शामिल होने से बचाना है तो मैन्युअल स्कैवेंजिंग संबंधी पुनर्वास में बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर की सफाई को अपराध घोषित करना और मौत होने पर 10 लाख रुपये मुआवजा देने, रेलवे ट्रैक की सफाई में मैन्युअल स्कैवेंजिंग रोकने, मैन्युअल स्कैवेंजिंग छोड़ने वाले व्यक्ति को पुनर्वास की सारी सहायता देने और महिलाओं को उपयुक्त रोजगार दिलाने जैसे कदमों को शामिल करना होगा.
मैन्युअल स्कैवेंजर्स जीरो होने पर सवाल
अब बिहार, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना में मैन्युअल स्कैवेंजर्स की संख्या शून्य होने के दावे को देखें तो राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के मुताबिक, 1 अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 के बीच बिहार में सीवर की सफाई करने के दौरान छह लोगों की मौत हुई. वहीं, हरियाणा में तीन और तेलंगाना में दो लोगों की मौत हुई.
संभव है कि संसद में केंद्र सरकार सिर्फ 2019 के आंकड़े दिए हों. लेकिन 6 नवंबर 2020 को डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बिहार में मैन्युअल स्कैवेंजिंग खत्म होने के दावे पर सवाल उठाया गया है. इसके मुताबिक, 2019 में नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डवलपमेंट कारपोरेशन (एनएसकेएफडीसी) ने बिहार के 16 जिलों में लगभग 5000 मैन्युअल स्कैवेंजर्स की पहचान की, लेकिन राज्य सरकार अपना चेहरा बचाने के लिए मैन्युअल स्कैवेंजर्स को मान्यता ही नहीं देती है. रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि असलियत में बिहार में मैन्युअल स्कैवेंजर्स की संख्या एनएसकेएफडीसी के आंकड़ों से पांच गुना ज्यादा है.
मैन्यु्अल स्कैवेंजर्स के लिए पुनर्वास कार्यक्रम
मैन्युअल स्कैवेंजर्स के लिए चल रहे पुनर्वास कार्यक्रम को देखें तो इसके तहत ऐसे व्यक्ति एक बार में 40 हजार रुपये की नगद सहायता, दो वर्ष तक कौशल प्रशिक्षण अवधि के दौरान हर महीने तीन हजार रुपये मासिक वजीफा, स्वरोजगार के लिए रियायती ब्याज दर पर 15 लाख रुपए तक का कर्ज दिलाना और कर्ज पर 25 हजार रुपये तक पूंजीगत सब्सिडी देना शामिल है.
इसके अलावा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए मशीनें खरीद के लिए 50 फीसदी सब्सिडी के साथ रियायती दर पर पांच लाख रुपये तक का कर्ज दिलाना भी शामिल है.
अंत में यह सवाल बना रह जाता है कि अगर सरकारें पुनर्वास के लिए ये सारे कदम उठा रही हैं तो फिर वे कौन लोग हैं जो आज भी सेप्टिक टैंक और सीवर की सफाई करते हुए अपनी जान गंवाने को मजबूर हैं?