लोक सभा के सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) की खुदकुशी समाज ही नहीं, देश की संसद के सामने भी कई सवाल छोड़ गई है. वे केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नागर हवेली से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में सातवीं बार चुनाव जीतकर लोक सभा पहुंचे थे. 22 फरवरी को वे मुंबई में एक होटल में मृत पाए गए थे. उनका शरीर रस्सी के सहारे पंखे से लटका मिला था. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) के शव के पास से पुलिस को 15 पेज का सुसाइड नोट मिला है, जो उन्होंने अपने आधिकारिक लेटर पैड पर लिखा था.
कांग्रेस ने क्या आरोप लगाए
महाराष्ट्र कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय का नेतृत्व करने वाले मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) की खुदकुशी के मामले की मुकम्मल जांच करने की मांग की है. बुधवार को महाराष्ट्र कांग्रेस ने कहा कि स्वतंत्र सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) बीजेपी नेताओं के उत्पीड़न से ऊब गए थे और अंत में उन्होंने अपना जीवन खत्म करने का फैसला किया. इस बारे में कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत की अगुवाई में एक डेलीगेशन ने राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख को ज्ञापन सौंपा है. इसमें बीजेपी के पदाधिकारियों पर सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) को परेशान करने का आरोप लगाया गया है.
कांग्रेस के डेलिगेशन ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए गृह मंत्री अनिल देशमुख से बात की. इसी बातचीत में महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा, ‘उन्होंने (सांसद मोहन एस. देलकर) अपने वीडियो में कुछ बीजेपी नेताओं के नाम का नाम लिया था. और अपने सुसाइड नोट में भी, ऐसा माना जा रहा है कि कई बीजेपी पदाधिकारियों के नाम लिए हैं, जिनमें केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक और गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री प्रफुल्ल के पटेल का नाम शामिल है, जिन्हें बीजेपी और आरएसएस नेतृत्व का करीबी माना जाता है.’
वहीं, गुरुवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ‘यह प्रफुल खोड़ा पटेल हिम्मतनगर से विधायक रहे हैं और जब अपराधिक मामलों के चलते अमित शाह को 2010 में बतौर गुजरात के गृह मंत्री इस्तीफ़ा देना पड़ा था, तब इन्हीं प्रफुल खोड़ा पटेल को नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात का गृह राज्य मंत्री बनाया था.’
महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने क्या कहा
महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने पूरे मामले की सही से जांच कराने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा, ‘ क्या केंद्र शासन का प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के ऊपर दबाव था, क्या प्रफुल्ल पटेल का वहां के प्रशासनिक अधिकारियों पर दवाब था, उनके प्रेशर के कारण आत्महत्या की. इस प्रकार के सवाल यहां पर खड़े हो रहे हैं. दूसरी बात उसने आत्महत्या मुंबई मंज आकर की है और यह समझ कर की है कि मुंबई में न्याय मिलेगा, महाराष्ट्र में न्याय मिलेगा. यह बहुत अहम बात है, इसकी हम पूरी जांच करेंगे.’
सांसद के बेटे ने भी उठाई जांच की मांग
कांग्रेस ने ही नहीं, बल्कि सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) के बेटे अभिनव देलकर ने भी उनकी खुदकुशी की मुकम्मल जांच कराने की मांग उठाई है. उन्होंने कहा, ’22 तारीख को मेरे पिता श्री ने खुदकुशी का जो कदम उठाया था, उसमें कई लोग जिम्मेदार हैं. मेरा महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस से यही अनुरोध है कि इसके पीछे जो लोग हैं और जिनको पिता श्री ने जिम्मेदार ठहराया है, उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले.’
भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी उठाई आवाज
विपक्षी दल और परिजनों के अलावा अन्य जनप्रतिनिधियों और आम जनता ने भी मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग उठाई है. #JusticeForMohanDelkar हैशटैग के साथ गुजरात के विधायक और भारतीय ट्राइबल पार्टी के संस्थापक छोटूभाई वसावा ने सांसद मोहन एस. देलकर (MP MOHAN S. DELKAR) की खुदकुशी का सवाल उठाया. ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ‘मोहनभाई देलकर जबरदस्त दबाव में थे, जैसा कि उनके लोक सभा भाषण में देखा जा सकता है. महाराष्ट्र सरकार को उन्हें और उनके परिवार को हर हाल में न्याय दिलाना चाहिए.’ एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘चार महीने पहले स्थानीय अधिकारियों की ओर से परेशान किए जाने की शिकायत लोक सभा अध्यक्ष से की थी. यहां तक कि लोक सभा अध्यक्ष ने उन्हें अपनी बात पूरी नहीं करने दी थी. इसलिए हम अपने आदिवासी नेता के लिए न्याय की मांग करते हैं. अपराधियों को हर हाल में सजा मिले.’
सांसद मोहन एस. देलकर ने लोक सभा में क्या कहा था
सांसद मोहन एस. देलकर ने संसद के मानसून सत्र में लोक सभा में स्थानीय अधिकारियों पर परेशान करने का आरोप लगाया था. 20 सितंबर 2020 को लोक सभा में उन्होंने कहा था, ‘अध्यक्ष महोदय, बहुत-बहुत धन्यवाद! मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे मेरे साथ स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित और अपमानित करने वाली अति गंभीर घटना के बारे में बोलने की अनुमति दी. महोदय, पिछले चार महीनों में जो कोरोना महामारी का दौर था, उस समय कुछ अधिकारियों ने मुझे परेशान और बदनाम करने के इरादे से झूठे मुकदमे बनाने की कोशिश की और सांसद के नाते मेरे कामकाज में बाधा पहुंचाई गई, कोरोना जैसी महामारी में मुझे लोगों की मदद करने से रोका गया.’
स्थानीय प्रशासन पर अपमान करने का आरोप
लोक सभा में सांसद मोहन एस. देलकर ने स्थानीय प्रशासन पर अपमान करने का भी आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था, ‘दादरा और नागर हवेली केंद्र शासित प्रदेश मुक्ति दिवस पर सरेआम मेरा अपमान किया गया. 35 साल से चली आ रही परम्परा के अनुसार प्रदेश के सांसद के नाते प्रदेश की जनता को संबोधित करने के मेरे अधिकार से मुझे वंचित कर दिया गया. मेरे पूछे जाने पर कि मेरा संबोधन क्यों काट दिया गया? तब प्रदेश के उप-समाहर्ता…(व्यवधान) सर, 20 सेकंड, यह बहुत गम्भीर मामला है. प्लीज मुझे यह कंप्लीट करने दीजिए. मेरे पूछे जाने पर कि मेरा संबोधन क्यों काट दिया? तब प्रदेश के उप-समाहर्ता और कार्यक्रम के उत्तरापेक्षी ने मेरे साथ अभद्र व्यवहार किया. एक के बाद एक, पिछले चार महीनों से मुझे लगातार परेशान और प्रताड़ित करने के उद्देश्य से अधिकारी षड़यंत्र के तहत कार्य कर रहे थे.’
‘लोक सभा की गरिमा को ठेस पहुंचती है’
लोक सभा में सांसद मोहन एस. देलकर ने अपने अपमान को लोक सभा की गरिमा के खिलाफ बताया था. उन्होंने कहा था कि प्रशासन के कुछ अधिकारी सांसद के साथ अभद्र व्यवहार और उनकी अवमानना करते हैं, जिसका बड़ा उदाहरण उनके साथ हुई घटना है. उन्होंने यह भी कहा था, ‘ऐसे अधिकारियों के व्यवहार से न केवल लोक सभा की गरिमा को ठेस पहुंचती है, बल्कि लोकतंत्र के ऊपर बड़ा खतरा मंडरा जाता है. इसलिए ऐसी घटनाओं को संसद में अति गम्भीरता से लेना होगा. (व्यवधान)मैं इस महान संसद में सातवीं बार चुनकर आया हूं.’
अन्य सांसदों ने भी जताई थी चिंता
लोक सभा में सांसद मोहन एस. देलकर के इस बयान पर अन्य सांसदों ने भी चिंता जताई थी. इनमें सांसद गिरीश चन्द्र, मलूक नागर, श्रीरंग आप्पा बारणे, ओम पवन राजेनिंबालकर, कुलदीप राय शर्मा, श्याम सिंह यादव और नवनीत रवि राणा के नाम शामिल थे. इन सबके बावजूद सांसद मोहन एस. देलकर की खुदकुशी ने कई सवाल लोकतंत्र और न्याय की पूरी व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सबसे अहम सवाल यह कि लोक सभा में एक सांसद के इतने गंभीर आरोप लगाए जाने के बाद सरकार ने क्या किया, क्या उनके आरोपों की जांच के लिए कोई कदम उठाया गया, क्या लोक सभा के स्तर पर उनकी शिकायतों को जांचने का प्रयास किया गया? कहीं ऐसा तो नहीं है कि देश की संसद में एक सांसद की अपनी ही आवाज अनसुनी रह गई?