भारत में कोरोना संक्रमण के मामले लगभग 90 लाख और इससे जान गंवाने वालों की संख्या एक लाख 30 हजार से ज्यादा हो गई है. दिल्ली में संक्रमण के मामलों में दोबारा उछाल देखा जा रहा है. इससे भीड़ न इकट्ठा होने की पाबंदियों को सख्त बनाया जा रहा है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवाओं का सारा ध्यान कोरोना से निपटने पर केंद्रित हो गया है. इससे टीबी जैसे संक्रामक रोगों के उग्र होने का खतरा बढ़ रहा है. इसकी ठोस वजह है. जैसा कि संसद में पेश केंद्र सरकार के आंकड़े ही बता रहे हैं कि कैसे ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी के मामले घटने के बजाए बढ़ रहे हैं. इससे टीवी उन्मूलन का लक्ष्य पीछे छूटने का खतरा खड़ा हो गया है
2025 तक टीवी उन्मूलन संभव है क्या
टीबी के बढ़ते मामलों का मुद्दा संसद के मानसून सत्र में सांसद पोचा ब्रह्मानंद रेड्डी ने उठाया था. उन्होंने सरकार से पूछा था कि (1) क्या देश में तपेदिक (टीबी) के मामलों और इसके कारण मृत्यु दर बढ़ रही है, अगर हां तो इसका ब्यौरा क्या है? बीते तीन वर्षों के दौरान कितने मामलों की जानकारी मिली है? (2) क्या सरकार ने टीबी उन्मूलन की कोई योजना बनाई है? हां तो उसका ब्यौरा क्या है?
घटने की जगह मामले बढ़ रहे हैं
इन सवालों के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने टीबी के मामले और इससे मृत्यु दर बढ़ने से इनकार किया. उन्होंने बताया कि ग्लोबल टीबी रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में प्रति लाख आबादी पर टीबी के मामलों और मृत्यु दर में कमी आई है. लेकिन सरकार का ही आंकड़ा है कि 2017 से 2020 के बीत लगातार टीबी के कुल मामले बढ़े हैं. 2017 में टीबी के 18 लाख 27 हजार तो 2019 में 24 लाख से ज्यादा मामले सामने आए. (देखें टेबल 1) यानी प्रति लाख आबादी पर टीबी के मामले और मृत्यु दर भले ही घटी हो, लेकिन कुल मामले बढ़े हैं. इसके साथ 2025 तक कैसे टीबी उन्मूलन होगा, यह बड़ा सवाल है.
लक्ष्य के मुताबिक नहीं घटे मामले
हालांकि, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने दावा किया कि सरकार 2025 तक टीबी के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है. इसके लिए सरकार ने राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एनएसपी) (2017-25) बनाई है. संसद के मानसून सत्र में लोक सभा सांसद एम.के.विष्णु प्रसाद ने भी सरकार से टीबी उन्मूलन पर जवाब मांगा था. उन्होंने पूछा था कि (1) क्या भारत 2025 तक टीबी उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध है, अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है? (2) क्या लक्ष्य प्राप्त करने के लिए साल 2018 में सालाना 10 फीसदी कटौती करने की जरूरत थी, लेकिन पूर्ववर्ती वर्ष यानी 2019 में सिर्फ दो फीसदी की कटौती की जा सकी, यदि हां तो इसका ब्यौरा क्या है? इस पर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा, ‘जी हां, लक्ष्य पाने के लिए टीबी के मामलों में तेजी से कमी लाने की आवश्यकता है. सतत विकास लक्ष्य के लक्ष्य को पाने के लिए आधार वर्ष 2015 के मुकाबले टीबी के मामलों में 80 फीसदी कमी लाने की जरूरत है.’
सरकार और डब्लूएचओ के आंकड़ों में अंतर
सरकार के दावे के उलट 2019 में टीबी के मामले 11 फीसदी बढ़कर 24 लाख से ज्यादा हो गए. यह आंकड़ा भारत में टीबी के 29 लाख से ज्यादा मामले होने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के काफी नजदीक है. केंद्र सरकार के मुताबिक, 2019 में टीबी से देश में कुल 79 हजार लोगों की मौत हुई. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि भारत में टीबी से मौतों का आंकड़ा चार लाख चालीस हजार से ज्यादा है. यानी भारत सरकार के मुताबिक, टीबी से रोजाना 215, जबकि डब्लूएचओ के मुताबिक 1200 से ज्यादा मौतें हो रही हैं.
कोरोना संकट ने मुश्किल बढ़ाई
इन आंकड़ों के बीच इतना तो साफ है कि कोरोना संकट ने टीबी मरीजों की मुश्किलें बढ़ाई हैं. मार्च में लॉकडाउन लगने के बाद यातायात के साधन ठप पड़ गए. ओपीडी सेवाएं भी लंबे समय तक बंद रहीं. इससे नए मामलों की जांच और जरूरतमंदों को समय पर इलाज मिलने में काफी दिक्कत आई. जनवरी से जून के बीच टीबी के दर्ज होने वाले मामलों में 25 फीसदी की गिरावट आई है. एक आकलन है कि मामलों का पता न लग पाने और इलाज न मिलने की वजह से इस साल टीबी से होने वाली मौतें 87 हजार से ज्यादा हो सकती हैं. यही वजह है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ 2025 तक टीबी उन्मूलन की योजना के बेपटरी होने की भी आशंका जता रहे हैं. हालांकि, कुछ डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना से बचाव के उपायों जैसे मास्क पहनने और खुले में खांसने-छीकने से परहेज जैसी बातों से टीबी का फैलाव रुकेगा.
सबको इलाज न मिलने की समस्या
हालांकि, भारत में टीबी के सभी मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता है. ग्लोबल टीबी रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 74 फीसदी टीबी मरीजों को इलाज मिल पाता है. इसके अलावा बीच में इलाज छोड़ने वाले मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है. एक अनुमान है कि पांच लाख से ज्यादा मरीज सरकार के निगरानी तंत्र के बाहर हो सकते हैं.
कुपोषण टीबी प्रसार की बड़ी वजह
भारत में टीबी के ज्यादा मरीज होने के पीछे कुपोषण एक बड़ी वजह है. एक आकलन है कि 40 फीसदी भारतीय आबादी में टीबी के बैक्टीरिया मौजूद होते हैं. इनमें 90 फीसदी लोग अपने शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र यानी इम्यून सिस्टम से टीबी संक्रमण को रोकने में सफल होते हैं. लेकिन जैसे ही उनका पौष्टिक भोजन न मिलने से उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, वे टीबी संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं. विशेषज्ञों का साफ कहना है कि अफ्रीकी देशों में टीबी के ज्यादा मामले के पीछे एचआईवी संक्रमण जिम्मेदार होता है, जबकि भारत में टीबी के 50 फीसदी मामलों में कुपोषण वजह होता है. इस चुनौती से निपटने के लिए निक्षय पोषण योजना चलाई जा रही है, जिसके तहत मरीजों को हर महीने 500 रुपये की पोषण सहायता दी जाती है.
दोहरी महामारी का खतरा
फिलहाल कोरोना संकट का विस्तार टीबी मरीजों के लिए इलाज तक पहुंच को मुश्किल बना रहा है. चूंकि, दोनों में सूखी खांसी और बुखार जैसे लक्षण होते हैं, इसलिए लोग कोरोना संक्रमित होने के डर से बाहर आने से बच रहे हैं. जाहिर है कि सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचना होगा, वरना कोरोना के साथ टीबी का प्रसार दोहरी महामारी बन सकता है.