केंद्र सरकार ने 18 दिनों के मानसून सत्र के दौरान लोक सभा में पेश किए जाने वाले 47 मदों (आइटम्स) की पहचान की है. इसमें 45 विधेयक और दो वित्तीय मद शामिल हैं. इन मदों में 11 विधेयक ऐसे हैं, जिन पर सरकार पहले ही अध्यादेश ला चुकी है. यानी इन्हें संसद की मंजूरी से कानून बनाया जाना है.
इनमें एमपीएमएसी एक्ट के प्रभाव को मंडी परिसर सीमित करने वाला फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रोमोशन एंड फैसलीटेशन) बिल-2020, कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग की इजाजत देने वाला फार्मर्स (इंपावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज बिल-2020 और इसेंशियल कमोडिटीज (आवश्यक वस्तु) (अमेंडमेंट) बिल-2020 शामिल हैं.
इन तीनों अध्यादेशों का पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में किसान तीखा विरोध कर रहे हैं. किसानों को डर है कि सरकार इन विधेयकों के जरिए खेती को कारपोरेट्स के हवाले करना चाहती है. किसान इन अध्यादेशों से भविष्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद बंद होने की भी आशंका जता रहे हैं. हालांकि, सरकार किसानों की इस आशंका को बेबुनियाद बता रही है.
सरकार के आश्वासन के बावजूद किसान कृषि अध्यादेशों को वापस लेने या फिर एमएसपी पर फसलों की खरीद को कानूनी गारंटी देने की मांग के साथ लगातार आंदोलन कर रहे हैं. बीते 9 सितंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में इन कृषि अध्यादेशों के विरोध में जुटे किसानों पर पुलिस लाठीचार्ज के बाद इस मामले ने तूल पकड़ लिया है.
इस घटना के बाद एनडीए में शामिल शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने सरकार से अलग राह पकड़ने के संकेत दिए हैं. पार्टी के नेताओं ने बीते हफ्ते किसान और खेत मजदूरों के संगठनों के साथ बैठक की. इसके बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने ट्विटर पर लिखा, ‘शिरोमणि अकाली दल ने सरकार से कहा है कि जब तक किसानों, किसान संगठनों और खेत मजदूरों की आशंकाएं पूरी तरह से दूर नहीं कर ली जाती हैं, तब तक तीनों कृषि अध्यादेशों को संसद में पेश नहीं किया जाए.’
उन्होंने बताया कि उनकी अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल केंद्र सरकार और दूसरे दलों से बातचीत करेगा, ताकि किसानों की चिंता दूर की जा सके. सुखबीर सिंह बादल ने ट्विटर पर आगे लिखा, ‘प्रकाश सिंह बादल किसानों के निर्विवाद नेता हैं, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल ने हमेशा से किसानों और खेत मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी है. हम इसे आगे भी जारी रखेंगे. उनके (किसानों के) भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने से बड़ा कोई दूसरा बलिदान नहीं है.’
इस बीच केंद्र सरकार ने आंदोलन कर रहे किसानों से बात करने के लिए तीन संसद सदस्यों की एक समिति बनाई है. हालांकि, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा, ‘अगर इस समिति को कुछ भी ताकत मिली है तो इसे सबसे पहले उन लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए, जिन्होंने किसानों को मारा-पीटा और उनके खिलाफ लाठी का इस्तेमाल किया.’
उन्होंने आगे कहा, ‘कमेटी को किसानों के खिलाफ दर्ज कराए गए मुकदमों को तत्काल वापस लेना चाहिए. एक तरफ सरकार कानूनी केस का भय दिखाकर किसानों को दबाने की कोशिश कर रही है, दूसरी तरफ बातचीत के मुखौटे से इसे छिपाने में लगी है.’
फिलहाल सरकार के सामने इस मुद्दे पर किसानों के आशंकाओं को दूर करने की चुनौती बनी हुई है.