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संसदीय समाचार

पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन में उपराष्ट्रपति ने क्या कहा?

‘राज्य’ के तीनों अंगों में से कोई भी सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि केवल संविधान सर्वोच्च है’ – एम. वेंकैया नायडू, उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को संबोधित किया
Photo credit - PIB

देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि ‘राज्य’ के तीनों अंगों में से कोई भी सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि केवल संविधान सर्वोच्च है और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान में परिभाषित अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में काम करने के लिए बाध्य हैं. गुजरात के केवडिया में पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने राष्ट्र निर्माण के लिए आपसी सम्मान, जिम्मेदारी और संयम की भावना के साथ मार्गदर्शन करने के लिए राज्य के तीन अंगों से काम करने का आग्रह किया. उन्होंने तीनों अंगों में से प्रत्येक के दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने के मामलों पर चिंता जतायी.

साथ ही, श्री नायडू ने विधानमंडलों के कामकाज को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए, पीठासीन अधिकारियों को लोकतंत्र के मंदिरों का ‘उच्च पुजारी’ बताते हुए, उनसे इन मंदिरों की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया. यह कहते हुए कि विधायिका लोकतंत्र की आधारशिला है जो कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों के कार्यों का आधार प्रदान करती है, श्री नायडू ने इन वर्षों में कानून बनाने वाले निकायों और विधानमंडलों के खिलाफ बन रही जनराय का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि बार-बार किए जाने वाले व्यवधान, सदनों के कक्षों के भीतर और बाहर विधि निर्माताओं का आचरण, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधि निर्माताओं की बढ़ती संख्या, चुनावों में धनबल में वृद्धि, विधि निर्माताओं द्वारा शक्ति का घमंड दिखाना, इस नकारात्मक धारणा के कुछ कारण हैं.

उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति ने कहा, “उम्मीदवारों के चयन के मापदंड के रूप में जाति, नकदी और आपराधिकता के, आचरण, चरित्र और क्षमता की जगह लेने से विधानमंडलों और उनके सदस्यों की प्रतिष्ठा कम हो रही है.” श्री नायडू ने राजनीतिक दलों से विधानमंडलों एवं विधि निर्माताओं की प्रतिष्ठा बढ़ाने और साथ ही विधानमंडलों का व्यवधान मुक्त कामकाज सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान स्थिति को लेकर आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया.

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श्री नायडू ने विशेष रूप से व्यवधानों के कारण विधानमंडलों के निरीक्षण (विधायिका के लिए कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना) संबंधी कामकाज में क्षरण का उल्लेख किया. उन्होंने खुलासा किया कि 2014 में राज्यसभा में प्रश्नकाल का समय सुबह 11 बजे से बदलकर दोपहर 12 बजे करने के बावजूद लगभग प्रश्नकाल का 60% कीमती समय अभी भी व्यवधानों और मजबूरन स्थगन होने के कारण गंवाया जा रहा है. सभापति ने बताया कि 2010-14 के दौरान, राज्यसभा में प्रश्नकाल के केवल 32.39% समय का इस्तेमाल किया जा सका, जिसके बाद 2014 के अंत में प्रश्नकाल का समय बदलकर दोपहर 12 बजे कर दिया गया. उन्होंने कहा कि इस पुनर्निर्धारण के बाद भी, अगले वर्ष यानी 2015 में, प्रश्नकाल के केवल 26.25% समय का लाभ उठाया गया था. उन्होंने आगे बताया कि 2015-19 की पांच वर्षों की अवधि के दौरान, यह बढ़कर 42.39% हो गया, जिसका अर्थ है कि सदन के ‘निरीक्षण’ संबंधी कामकाज के तहत सरकार से सवाल करने के लिए मौजूद कुल समय का करीब 60% हिस्सा गंवाया गया.

श्री नायडू ने कहा कि प्रश्नकाल में व्यवधान न करने, सांसदों के सभापति के आसन के पास ना जाने के विषयों पर संसद के दोनों सदनों द्वारा 1997 में देश की आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद भी राज्यसभा में प्रश्नकाल का कीमती समय बर्बाद हो रहा है. उन्होंने पिछले 30 वर्षों में प्रश्नकाल के इस्तेमाल किए जाने वाले समय में कमी के चलन पर गंभीर चिंता व्यक्त की.

श्री नायडू ने कहा, “लोकतंत्र के मंदिरों के शिष्टाचार, सभ्यता और गरिमा (डिसेंसी, डेकोरम और डिग्निटी) को केवल तीन और ‘डी’ यानी वाद-विवाद, चर्चा और निर्णय का (डिबेट, डिस्कस और डिसाइड) पालन करके ही बनाए रखा जाएगा.”

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यह देखते हुए कि 1993 में शुरू किया गया संसद की संसदीय स्थायी समितियों का विभाग संसद की ओर से विधेयकों की विस्तृत जांच, अनुदानों की मांगों और समितियों द्वारा चुने गए अन्य मुद्दों पर काम करते हुए महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है, श्री नायडू ने पीठासीन अधिकारियों से राज्यों की सभी विधानसभाओं में इस तरह की समिति प्रणाली की शुरुआत सुनिश्चित करने का आग्रह किया. उन्होंने 2019-20 के दौरान उपस्थिति, बैठकों की औसत अवधि आदि के संबंध में इन समितियों के कामकाज में आए सुधार का उल्लेख किया.

उपराष्ट्रपति ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के सामंजस्यपूर्ण तरीके से काम करने के मुद्दे पर, उनके संविधान में दिए गए संतुलन प्रभावों का उल्लंघन करते हुए दूसरे के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश करने के साथ अलग-अलग स्तर पर ‘लक्ष्मणरेखा’ पार करने के उदाहरण दिए.

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श्री नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय की अपने अधिकार क्षेत्र और शक्तियों को लेकर की गयी कुछ टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कहा, यहां तक कि ‘सबसे ऊपर आने’ का सिद्धांत शीर्ष अदालत पर भी लागू नहीं होता है और केवल संविधान सर्वोच्च है. श्री नायडू ने कहा, “हम अपने ‘राज्य’ को उसकी सबसे अच्छी स्थिति में तब मानते हैं, जब हमारे ‘राज्य’ के तीनों अंगों में से प्रत्येक, अधिकार की खोज में और संविधान में निर्धारित तरीके से अपने लिए निर्दिष्ट अधिकार क्षेत्रों में अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता में काम करते हैं. उन्होंने इस बात जोर दिया कि न्यायपालिका के लिए यह सही नहीं है कि ऐसा लगे कि वह ‘महा कार्यपालिका” या ‘महा विधायिका’ के तौर पर काम कर रही है.

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उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू ने कहा कि “काफी न्यायिक घोषणाएं हुई हैं, जिनमें हस्तक्षेप की स्पष्ट छाप दिखती है. इन कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप संविधान द्वारा तय की गयी रेखाएं धुंधली हो गयी है जिसे रोका जा सकता था.”

उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू ने उच्च न्यायपालिका का दीपावली पर आतिशबाजी से जुड़ा फैसला, 10 या 15 साल के बाद कुछ विशेष वाहनों के उपयोग पर प्रतिबंध, पुलिस जांच की निगरानी करने, कॉलेजियम के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को किसी भी तरह की भूमिका से वंचित रखने, जवाबदेही और पारदर्शिता को लागू करने से जुड़े राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को अमान्य करने जैसे कुछ उदाहरण दिए जिन्हें न्यायपालिका के हस्तक्षेप के मामलों के तौर पर देखा जा रहा है.

संसदीय समाचार

नियम 255 के तहत तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्य राज्य सभा से निलंबित

बुलेटिन के मुताबिक, “राज्य सभा के ये सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समक्ष आ गये, आसन की आज्ञा का पालन नहीं किया. सभापति ने उन्हें नियम 255 के तहत सदन से बाहर निकल जाने के लिए कहा था.”

पेगासस, राज्य सभा

राज्य सभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को पेगासस जासूसी विवाद को लेकर आसन के सामने तख्तियां लेकर एकत्रित होने वाले तृणमूल कांग्रेस के छह सदस्यों को सदन से पूरे दिन के लिए निलंबित कर दिया.

बुधवार की सुबह कार्यवाही शुरू होने के बाद सभापति ने किसानों के मुद्दे पर चर्चा के लिए दिए गए नोटिस स्वीकार करने और अन्य नोटिस खारिज करने की जानकारी दी. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्य आसन के समक्ष आकर पेगासस जासूसी विवाद पर चर्चा की मांग करने लगे. इस दौरान कई सदस्य आसन के सामने आ गए.

सभापति ने इन सदस्यों से अपने स्थानों पर लौट जाने और कार्यवाही चलने देने की अपील की. उन्होंने कहा कि जो सदस्य आसन के समक्ष आए हैं और तख्तियां दिखा रहे हैं, उनके नाम नियम 255 के तहत प्रकाशित किए जाएंगे और उन्हें पूरे दिन के लिए निलंबित कर दिया जाएगा.

सभापति की चेतावनी के बावजूद शोर-शराबा जारी रहा. इसके बाद सभापति ने आसन की अवज्ञा कर रहे सदस्यों से नियम 255 के तहत सदन से बाहर चले जाने के लिए कहा. उन्होंने स्वयं किसी सदस्य का नाम नहीं लिया, लेकिन राज्य सभा सचिवालय से इन सदस्यों के नाम देने का निर्देश दिया.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, बाद में संसदीय बुलेटिन में बताया गया कि जिन छह सदस्यों को पूरे दिन के लिए निलंबित किया गया है उनमें तृणमूल की डोला सेन, मोहम्मद नदीमुल हक, अबीर रंजन विश्वास, शांता छेत्री, अर्पिता घोष एवं मौसम नूर शामिल हैं.

बुलेटिन के मुताबिक, “राज्य सभा के ये सदस्य तख्तियां लेकर आसन के समक्ष आ गये, आसन की आज्ञा का पालन नहीं किया और आज सुबह उनका आचरण पूरी तरह से अनुचित था. सभापति ने उन्हें नियम 255 के तहत सदन से बाहर निकल जाने के लिए कहा था.”

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गौरतलब है कि नियम 255 के तहत नाम लिए जाने पर सदस्यों को पूरे दिन के लिए सदन की कार्यवाही से निलंबित कर दिया जाता है.

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संसदीय समाचार

‘सरकार ने विश्वासघात किया है’

19 जुलाई से मानसून सत्र आरंभ हुआ था, लेकिन अब तक दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित रही है. विपक्षी दलों का कहना है कि पेगासस स्पाईवेयर के जरिए जासूसीकांड पर चर्चा के साथ ही संसद में गतिरोध खत्म होगा.

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Photo credit- Twitter

संसद में जासूसी सॉफ्टवेयर या स्पाईवेयर पेगासस के जरिए जासूसी (pegasus snoopgate) किए जाने के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है. प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक करने के बाद इस पर सदन में चर्चा करने की मांग उठाई है। बुधवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोक सभा सांसद राहुल गांधी ने कहा कि पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल लोकतंत्र की आत्मा पर चोट करना है और इस मामले पर संसद में चर्चा होनी चाहिए.

प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान सांसद राहुल गांधी ने दावा किया कि सरकार ने पेगासस पर चर्चा करने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा, ‘हमारी आवाज को संसद में दबाया जा रहा है. हमारा सिर्फ यह सवाल है कि क्या भारत सरकार ने पेगासस को खरीदा?…हां या ना? क्या सरकार ने अपने ही लोगों पर पेगासस हथियार का इस्तेमाल किया ?… हां या ना?’

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक,  कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आगे कहा, ‘कहा जा रहा है कि हम संसद की कार्यवाही बाधित कर रहे हैं. हम संसद को बाधित नहीं कर रहे हैं. हम सिर्फ विपक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरा करना चाह रहे हैं. इस हथियार का उपयोग देश के खिलाफ किया गया है.’

राहुल गांधी ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से पूछना चाहते हैं कि इसका इस्तेमाल लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ क्यों किया गया? पेगासस का मामला राष्ट्रवाद का मामला है। मेरे लिए यह निजता का मामला नहीं है। नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह ने देश के लोकतंत्र की आत्मा पर चोट मारी है। इसलिए हम इस पर चर्चा चाहते हैं।’

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समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव ने कहा कि संसद की कार्यवाही नहीं चलने के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है, पेगासस के मुद्दे पर सभी विपक्षी दल एकजुट हैं. वहीं, शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा, ‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है. सरकार को खुद आगे आकर कहना चाहिए कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं. सरकार ने विश्वासघात किया है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘यह पहली बार नहीं हो रहा है कि संसद की कार्यवाही नहीं चल रही है. अगर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर बात नहीं करना चाहती है तो फिर किस पर करना चाहती है.’

बुधवार को संवाददाता सम्मेलन से पहले विपक्षी नेताओं ने संसद भवन से विजय चौक तक मार्च किया। इस दौरान उन्होंने पेगासस पर चर्चा के लिए हाथ में तख्तियां ले रखी थीं। पेगासस स्पाईवेयर मोबाइल के जरिए जासूसी करता है.

पिछले दिनों नेताओं से लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की इस स्पाइवेयर के जरिए जासूसी करने की खबरें आई थीं। इसमें सत्ता पक्ष के भी कई नेताओं के शामिल शामिल हैं।

इससे पहले राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के संसद भवन स्थित कक्ष में विपक्षी दलों की बैठक हुई. इस बैठक में खड़गे, राहुल गांधी, शिवसेना के संजय राउत, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रफुल्ल पटेल, द्रमुक के टीआर बालू, राजद के मनोज झा और कई अन्य दलों के नेता मौजूद रहे.

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पेगासस और कुछ अन्य मुद्दों को लेकर पिछले कई दिनों से संसद के दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है. 19 जुलाई से मानसून सत्र आरंभ हुआ था, लेकिन अब तक दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित रही है. विपक्षी दलों का कहना है कि पेगासस जासूसी मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए सरकार के राजी होने पर ही संसद में गतिरोध खत्म होगा.

संसद

पेगासस प्रोजेक्ट जासूसी कांड पर संसद में हंगामा बढ़ने के आसार, विपक्ष ने चर्चा के लिए दिए नोटिस

पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) जासूसी कांग पर चर्चा के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने राज्य सभा में शून्यकाल के लिए तो कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने लोक सभा में स्थगन प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया है.

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Photo credit- Sanjay Singh Twitter

पेगासस प्रोजेक्ट (Pegasus Project) जासूसी कांड पर सवाल उठा रहे विपक्षी दल केंद्र सरकार की अब तक की सफाई से संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं. मंगलवार को कांग्रेस से लेकर आम आदमी पार्टी तक, विभिन्न विपक्षी दलों ने इस पर चर्चा का नोटिस दिया है.

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, राज्य सभा में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह (AAP MP Sanjay Singh) ने मंगलवार को ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ (Pegasus Project) मीडिया रिपोर्ट पर राज्यसभा में शून्यकाल नोटिस (Zero Hour notice) दिया है.

वहीं, कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर (MP Manickam Tagore) ने लोक सभा में स्थगन प्रस्ताव (Adjournment motion notice) का नोटिस दिया है.

सोमवार को, आप सांसद संजय सिंह ने पेगासस स्पाइवेयर से सामने आई जासूसी पर नियम-267 के तहत कार्यस्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था. मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को कार्यवाही को दिन भर के लिए स्थगित किए जाने से पहले तीन बार कार्यवाही को रोकना पड़ा था.

गौरतलब है कि रविवार को द वायर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करके पत्रकारों और नेताओं की जासूसी किए जाने का दावा किया गया था. इसके मुताबिक, एक अज्ञात एजेंसी ने पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल करके 40 से अधिक भारतीय पत्रकारों की जासूसी की. इनमें हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस और नेटवर्क18 सहित देश के कई समाचार संगठनों के लिए काम करने वाले पत्रकार शामिल हैं. ये पत्रकार रक्षा, गृह मंत्रालय, चुनाव आयोग और कश्मीर से संबंधित मामलों को कवर करते हैं.

इसके अलावा विपक्ष और सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं और मंत्रियों की जासूसी किए जाने के भी आरोप लगे हैं. हालांकि, केंद्र का कहना है कि इस मामले को सरकार से जोड़कर देखने की जरूरत नहीं है. लेकिन जिस कंपनी पर पेगासस स्पाईवेेयर के जरिए जासूसी करने का आरोप है, वह सरकार के साथ ही मिलकर काम करती है.

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संसदीय समाचार

संसद के मानसून सत्र का पहला दिन, विपक्ष ने उठाए जनता से जुड़े अहम मुद्दे

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्षी दलों ने महंगाई और केंद्र के तीनों कृषि कानूनों को लेकर हंगामा किया. विपक्षी सदस्यों को तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ नारेबाजी करते सुना गया.

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केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ सड़क से लेकर संसद तक विरोध जारी है. संसद में मानसून सत्र के पहले दिन राज्य सभा में कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ आवाज उठाई, जिसके बाद उच्च सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई.

इससे पहले दिवंगत वर्तमान सदस्यों रघुनाथ महापात्र और राजीव सातव के सम्मान में उच्च सदन की कार्यवाही को एक घंटे के लिए स्थगित किया गया था. इसके बाद कार्यवाही शुरू होने पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने सदस्यों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से पिछले डेढ़ साल से देश की जनता अनिश्चितता के माहौल में जी रही है और कोई नहीं जानता कि यह सब कब तक चलेगा.

उपराष्ट्रपति के संबोधन के बाद प्रधानमंत्री ने सदन में प्रवेश किया. विपक्षी दलों के हंगामे के बीच ही सभापति ने प्रधानमंत्री को अपनी मंत्रिपरिषद के नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए कहा. इस दौरान विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के सदस्य आसन के निकट पहुंच कर नारेबाजी करने लगे. विपक्षी सदस्यों को तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ नारेबाजी करते सुना गया.

इस हंगामे के कारण प्रधानमंत्री अपनी मंत्रिपरिषद के सदस्यों का परिचय नहीं करा पाए और उन्होंने नये मंत्रियों की सूची को सदन के पटल पर रख दिया.

विपक्षी दलों का हंगामा जारी रहने पर सदन की कार्यवाही को मंगलवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया.

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