हरियाणा में सीएम मनोहर लाल खट्टर के बाद अब मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का भी दूसरे राज्यों के किसानों को लेकर विवादित बयान सामने आया है. उन्होंने दूसरे राज्यों से मध्य प्रदेश में फसल बेचने आने वाले किसानों पर कार्रवाई करने की बात कही है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, शिवराज सिंह ने कहा, “मैंने तय किया है कि जितनी पैदावार किसान की यहां होगी उतनी खरीद ली जाएगी. लेकिन अगर बाहर से कोई आया, अगल-बगल के राज्यों से बेचने या बेचने का प्रयास भी किया तो उसका ट्रक राजसात करवाकर उसे जे़ल भिजवा दिया जाएगा.”
सीएम खट्टर भी दे चुके हैं चेतावनी
इससे पहले हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने राजस्थान के उन किसानों पर कार्रवाई करने की बात कह चुके हैं, जो ज्वार बेचने के हरियाणा आते हैं. दरअसल, दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों का बयान कृषि कानूनों से किसानों को देश में कहीं भी फसल बेचने की आजादी मिलने के केंद्र सरकार के दावे से हवा निकाल रहा है. केंद्र सरकार के दावे के मुताबिक, अगर किसानों को कहीं भी फसल बेचने की आजादी मिल गई है तो राज्य सरकारें उसे कहीं पर भी सरकारी खरीद में अपनी फसल बेचने पर रोक क्यों लगा रही हैं? वैसे भी राज्य सरकारें या उसकी एजेंसियां केंद्र की ओर से अनाज की खरीद करती हैं, इसलिए अपने और दूसरे राज्यों के किसानों के बीच फर्क क्यों किया जा रहा है? ऊपर से कानूनी कार्रवाई की यह धमकी आजादी की किस परिभाषा में आती है?
दिल्ली में जमा हैं किसान
यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब बड़ी संख्या में किसान केंद्र के कृषि कानूनों को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने की मांग के साथ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलनरत किसानों का साफ कहना है कि ये कानून उन्हें नहीं, बल्कि कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं.
दरअसल, सरकार भले ही नए कानूनों से किसानों को अच्छी कीमत मिलने के दावे कर रही हो, लेकिन जून से लेकर अब तक किसानों को लगातार फसलों के सही दाम के लिए भटकना पड़ रहा है. अभी उत्तर प्रदेश जैसे दूसरे सबसे बड़े धान उत्पादक राज्य में किसान खुले बाजार में धान को 1100-1200 रुपये प्रति क्विंटल में बेचना पड़ रहा है, जबकि एमएसपी 1868 रुपये प्रति क्विंटल घोषित है.
किसान मूंग की सरकारी खरीद का इंतजार करते रह गए
इतना ही नहीं, सीएम शिवराज सिंह चौहान का प्रदेश के किसानों का एक-एक दाना अनाज खरीदने का दावा भी प्रदेश के किसानों के गले उतरता नहीं दिखाई दे रहा है. इसी साल सरकार ने किसानों से पहले ग्रीष्मकालीन मूंग खरीदने का वादा किया. लेकिन बाद में सरकार ने यह कहते हुए मूंग की सरकारी खरीद करने के इनकार कर दिया कि उसके गोदाम अभी खाली नहीं हैं. इससे किसानों को एमएसपी के मुकाबले भारी नुकसान उठाना पड़ा.
सरकारी खरीद की मांग करते रहे मक्का किसान
इतना ही नहीं, प्रदेश में रबी सीजन में मक्का उगाने वाले किसान इसके गिरते दाम से परेशान रहे. उन्होंने मक्के की सरकारी खरीद की मांग करते हुए लंबे समय तक किसान सत्याग्रह चलाया. लेकिन सरकार ने उनकी मांगों पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया. इसका नतीजा रहा कि किसानों को 1850 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी होने के बावजूद अपनी मक्के की फसल 900-1000 रुपये प्रति क्विंटल में बेचनी पड़ी.
सही दाम न मिलने की वजह से परेशान किसान लगातार यह मांग कर रहे हैं कि सरकार फसलों न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी मान्यता दे. यानी इससे नीचे से कम दाम पर फसलों की खरीद को कानूनी तौर पर गलत घोषित किया जाए. हालांकि, केंद्र सरकार फिलहाल इसके लिए तैयार नहीं दिखाई दे रही है.
किसान नेताओं ने उठाया सवाल
सीएम शिवराज सिंह चौहान के बयान और किसानों की सारी फसल खरीदने के दावे किसान नेता तीखे सवाल उठा रहे हैं. मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राहुल राज ने कहा कि कोरोना काल में जब किसानों को मदद की जरूरत थी तब तो राज्य सरकार ने मक्का और मूंग की खरीद नहीं की, किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, अब सारी फसलें खरीद करने का भरोसा दिला रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सीएम शिवराज सिंह का यह बयान केंद्र सरकार के ‘वन नेशन-वन मार्केट’ के दावे पर भी सवाल उठा रहा है है, जिसके लिए लाए गए कानूनों के खिलाफ आज देश का किसान सड़कों पर उतरा हुआ है.