किसानों के आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया है. केंद्र सरकार का कहना कि यह फैसला कई विपक्षी दलों के साथ बातचीत के आधार पर लिया गया है. लेकिन चौंकाने वाली बात है कि कांग्रेस, शिवसेना, डीएमके और हाल के दिनों तक एनडीए का हिस्सा रहे शिरोमणि अकाली दल तक सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं. सवाल उठता है कि सरकार ने किन विपक्षी दलों से बातचीत की थी, जबकि प्रमुख विपक्षी दल किसानों के आंदोलन को देखते हुए तत्काल संसद सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं.
शिवसेना ने लगाया आरोप
संसद का शीतकालीन सत्र न बुलाने के फैसले को लेकर शिवसेना ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. रविवार को शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन पर चर्चा से बचने के लिए सरकार ने शीतकालीन सत्र को रद्द किया है. सितंबर में मानसून सत्र के दौरान संसद से पारित केंद्र की तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर धरना दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें दिल्ली में अंदर नहीं आने दिया गया है. इन किसानों की मांग है कि सरकार तत्काल तीनों कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों को खरीदने की गारंटी देने वाला कानून बनाए. हालांकि, केंद्र सरकार इन कानूनों को किसानों के लिए फायदेमंद बता रही है और विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने के आरोप लगा रही है.
कांग्रेस भी उठा चुकी है सवाल
किसानों के आंदोलन के मद्देनजर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी शीतकालीन सत्र न बुलाने के फैसले पर सवाल उठाया है. उनका कहना कि सरकार के पास किसानों के आंदोलन का अभी कोई जवाब नहीं है, इसलिए वह संसद सत्र को टाल कर इससे जुड़े सवालों से बचना चाहती है. इस बीच डीएमके ने भी सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है और किसानों के प्रदर्शन, चीन के साथ सीमा पर घुसपैठ जैसे मुद्दों को देखते हुए तत्काल सत्र बुलाने की मांग की है.
राष्ट्रपति से दखल देने की अपील
कुछ दिन पहले तक केंद्र सरकार में शामिल रही शिरोमणि अकाली दल ने शीतकालीन सत्र बुलाने के लिए राष्ट्रपति से दखल देने की अपील की है. पार्टी के अध्यक्ष और लोक सभा सांसद सुखबीर सिंह बादल ने शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखी चिट्ठी में कहा कि कोरोना का बहाना देकर संसद सत्र न बुलाने की दलील कारगर नहीं है, आप लोगों को कैसे भरोसा दिलाएंगे कि संसद का उस समय सत्र चल सकता है, जब कोरोना के मामले चरम पर थे, और अब जब सरकार खुद कह रही है कि हालात काबू में हैं और पूरे देश में लॉकडाउन की जरूरत नहीं है तो फिर संसद के शीतकालीन सत्र क्यों रद्द कर दिया? उन्होंने आगे लिखा कि यह विडंबना है कि सत्ताधारी पार्टी पहले बिहार और अब पश्चिम बंगाल में होने वाली अपनी चुनावी रैलियों में हजारों लोगों की भीड़ से जन स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं देखती है, लेकिन वह चाहती है कि जनता इस बात पर भरोसा कर लें कि संसद सत्र चला तो महामारी फैल जाएगी.
‘संसद पर लॉकडाउन, चुनावी रैलियों पर नहीं’
सुखबीर सिंह बादल ने यह भी लिखा कि बीजेपी की रैलियों पर कोई लॉकडाउन नहीं है लेकिन संसद पर लॉकडाउन है जहां कुछ सौ सदस्य को काम करना है. सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में संसद के सत्र को तत्काल बुलाया जाना चाहिए, अगर सरकार दूसरा कोई और रास्ता चुनती है तो यह बहुत ही चौंकाने वाली असंवेदनशीलता होगी, क्योंकि अब तक दो दर्जन से ज्यादा निर्दोष और देशभक्त किसान अपनी जान गवां चुके हैं. आपको बता दें कि शिरोमणि अकाली दल पहले एनडीए का हिस्सा थी और कृषि अध्यादेशों से फायदे होने के दावे कर रही थी. लेकिन जब सरकार ने कृषि विधेयकों को संसद में पेश कर दिया तो इस पर नाराजगी दिखाते हुए उसने एनडीए और सरकार से नाता तोड़ लिया था.
सरकार ने किन विपक्षी दलों से बात की थी?
ऐसे में सवाल उठता है कि जब सभी विपक्षी दल संसद का शीलकालीन सत्र बुलाने की मांग कर रहे हैं तो सरकार ने किन विपक्षी दलों से बातचीत के आधार पर सत्र न बुलाने का फैसला किया है. अगर मान भी लिया जाए कि सरकार ने विपक्षी दलों की सलाह पर संसद सत्र नहीं बुलाया है तो अब विपक्षी दलों का कहना मानकर संसद सत्र बुला क्यों नहीं लेती है?