संसद का बजट सत्र राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ शुरू हो गया. परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में अपनी सरकार की उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं की झांकी पेश की. उनके अंग्रेजी में अभिभाषण को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने पढ़ा.
हालांकि, संसद के भीतर और बाहर हर जगह पर कृषि कानूनों का मुद्दा छाया रहा. एक तरफ कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ देश भर से आए किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. इन किसानों की मांगों का समर्थन करते हुए समूचे विपक्ष (18 दलों ने) न केवल राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार कर दिया, बल्कि कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग तेज कर दी है.
सांसदों को सदन में जाने से रोकने का आरोप
लोक सभा सांसद राहुल गांधी ने अन्य कांग्रेसी सांसदों के साथ संसद परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन किया.
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा, ‘कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए. हमने राष्ट्रपति के अभिभाषण के खिलाफ प्रदर्शन किया है और किसानों के समर्थन में नारे लगाए. हमें अंदर नहीं जाने दिया गया, इसलिए हमने गेट पर खड़े होकर नारे लगाए. किसानों को विश्वासघाती कहा जा रहा है, इसलिए हमने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया है.’
वहीं, संसद के बाहर विपक्षी दलों के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल रहे लोकतांत्रिक पार्टी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने सदन के भीतर राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान प्ले कार्ड दिखाया और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की.
‘राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार दुर्भाग्यपूर्ण’
विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति के अभिभाषण के बहिष्कार को सत्ताधारी बीजेपी ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘राष्ट्रपति राजनीतिक मतभेदों से ऊपर हैं. वे संवैधानिक प्रमुख हैं. उनके भाषण का आदर करना लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस, जिसने देश पर 50 साल तक शासन किया है, उसने इसका बहिष्कार किया. किस तरह की परंपरा वे स्थापित करना चाहते हैं?’
‘किसानों के समर्थन में अभिभाषण का बहिष्कार’
गौरतलब है कि किसान आंदोलन और उनकी मांगों के समर्थन में लगभग सभी दलों ने राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया. हालांकि, बीजेपी के आरोपों का जवाब देते हुए कांग्रेस सांसद और लोकसभा में सदन के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, ‘राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करना उनका अनादर नहीं है. हम किसानों के साथ खड़े हैं और मांग कर रहे हैं कि कृषि कानूनों को वापस लिया जाए. यही राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने की प्रमुख वजह है. जब धन्यवाद प्रस्ताव और अभिभाषण पर बहत होगी, हम बहस करेंगे.’
कृषि कानूनों से किसानों को फायदा-राष्ट्रपति
इन सबके बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अपने अभिभाषण में न केवल कृषि कानूनों को किसानों के लिए फायदेमंद बताया, बल्कि यह भी कहा कि इन कानूनों से 10 करोड़ छोटे किसानों को लाभ मिलना शुरू हो गया है. उन्होंने कहा, ‘मेरी सरकार स्पष्ट करना चाहेगी कि तीनों कृषि कानूनों के आने से पहले से जो सुविधाएं और अधिकार थे, वे किसी तरह से कम नहीं हुए हैं. वास्तव में नए कृषि कानून सुधारों के साथ सरकार ने किसानों को नई सुविधाएं और नए अधिकार उपलब्ध कराएं हैं.’
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का धरना जारी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से पहले सरकार भी इन तमाम बातों को दोहराती रही है. लेकिन इनसे कृषि कानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच बना गतिरोध बीते 6 महीने में दूर नहीं हो पाया है.
आंदोलनरत किसानों की दो साफ मांगें हैं. पहला, तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और दूसरा- न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी गारंटी देने वाला कानून बनाया जाए.
फिलहाल तक केंद्र सरकार इन दोनों मांगों पर कहीं से भी सहमत होने के संकेत नहीं दिए हैं. यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक इन कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी है. हालांकि, किसान इसे समस्या का स्थाई समाधान नहीं मान रहे हैं और अपनी मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखने की बात कर रहे हैं.
धरना को जबरन खत्म कराने का विरोध
यूपी-दिल्ली के बॉर्डर पर गाजीपुर में गुरुवार को पुलिस प्रशासन ने किसानों का धरना खत्म कराने की कोशिश की थी. लेकिन इसकी सूचना लगते ही बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे. इसके बाद वहां पर तैनात अतिरिक्त सुरक्षा बलों को हटा लिया गया. इस बीच शुक्रवार को सिंधू बॉर्डर पर किसानों के धरने को खत्म कराने के लिए प्रदर्शन और टकराव की घटना सामने आई है.